पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/८६

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हिंदू देवी होने के कारण वह नौ वर्ष तक अदालत में नहीं गई, परंतु ऐसा जान पड़ता है कि अंत को बुढापे और भूख से तंग आकर उसे गुज़ारा पाने के लिये अदालत में नालिश करनी पड़ी । अदालत ने फैसला दिया कि क्योंकि वर और वधू दोनो एक अति के नहीं, इसलिये हिंदू-कानून के अनुसार विवाह ज़यज नहीं। इसलिये वह अपने पति की दासी या रखेल के तौर पर भी इससे कोई गुज़ारा न से सकी। वह रखेल भी सिद्ध न सकी, क्योंकि उसके लिये कानुन निरंतर रूप से इकट्ठा रहना चाहता है, और हिंदू-स्त्री लज्जा न उसे नौ वर्ष तक अदालत में जाने से रोके रक्खा । सिविल कांट्रेक्ट या रिप्रिजेंटेशन का कोई भी सिद्धांत उसे सहायता न दे सका, और बेचारी के पास ओई चारा न रहा। यह केस १४ बांबू लाॅ रिपोर्टर के पृष्ठ ५४७ पर 'काशी बनाम जमनादास' छपा है ।

( २ ) दूसरा केस २ बंबई लाॅ रिपोर्टर के पृष्ठ १२८ पर 'लक्ष्मी बनाम कल्याणसिंह' छपा है। उस केस में कल्याणसिंह राजपूत ने लक्ष्मी ब्राह्मणी से विवाह किया । लक्ष्मी को उसके पति के घर से ले जाया गया और उसके साथ रहने न दिया गया । इसलिये कल्याणसिह ने अपनी स्त्री लेने के लिये अदालत में नालिश की। तब यह निर्णय हुआ कि यद्यपि सचमुच्च विवाह हो चुका है, परंतु कानून की दृष्टि में यह कोई विवाह नहीं, क्योंकि वर और वधू दोनों एक जाति के नहीं है इसलिये कल्याणसिह पती-रूप से उसको अपने पास रखने का अधिकारी नहीं।

व्यक्तिगत दशाओं में इन कठिनाइयों के सिवा भी विवाह सारे नागरिक जीवन का आधार है। यथासंभव उराम विवाह होने पर ही घर की सारा सुख, जाति की शक्ति और आत्म-सम्मान, और राष्ट्र का आत्म-विश्वास तथा उन्नति निर्भर है ।

ऐसे विवाहों के रास्ते में जितनी भी अनावश्यक रूकावटें हैं, उनका