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पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/९१

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उत्तर-- यह ठीक है कि किसी विदेशी सरकार को किसी जाति की सामाजिक बातों में हस्तक्षेप करना ठीक नहीं, परतु क्या आपको यह बात उस समय नहीं सूझती थी जब सरकार ने यह कानून बनाया था कि जाति-पाँति-तोङक विवाह की संतान पैतृक संपत्ति की अधिकारी नहीं हो सकती है आपके भाइयों ने जिस समय यह जाति-पाँति बनाकर छोटी जातियों को सदा अपना दास बनाए रखने का कुसत उद्योग किया था, उस समय आपके खयाल के लोगों को राज्य था क्या उस अत्याचार की अब दूर न किया जाय ? एक ओर आप तो कानून को सहायता लेकर जाति-पाँति तोङकों पर अत्याचार कर रहे हैं, उन्हें अपने पिता की विरासत में वंचित कर रहे हैं, दुसरी ओर जब जाति-पाँति-तोड़के आपके इस अत्याचार को दूर करना चाहते हैं, तो आप सरकार को तटस्थ रहने का उपदेश देते हैं। क्या यह न्याय हैं ? हिंदुओं का रीति-रिवाज़ और शास्त्र अछूता और अंत्यजी के साथ जिस प्रकार के कुत्सित व्यवहार की आज्ञा देता है क्या इस ब्रिटिश-राज्य में भी उसे जारी रखा जाय ? क्या अछूतो को पढ़ने-लिखने, साफ्रि रहने, धन कमाने और राज्य प्रबध में भाग लेने से रोके रखा जाय, क्योंकि ये बातें हिंदू भावना के विरुद्ध है ? जब दूसरे समाज जाति-पाँति के बिना जीते रह सकते हैं, तो कोई कारण नहीं कि जाति-पाति को उङा देने पर हिंदू क्यों न जीते रह सके।

जो वेद-भत्र एक ही जाति के घर और वधू के विवाह को पवित्र और स्थायी बना सकते हैं, वही भिन्न-भिन्न जातियों के वर-वधू के विवाह को भी पवित्र बना देते हैं । जाति तो आप भो तोड़ते हैं, चाहे थोङी तोड़ते हैं या बहुत । यदि आप जाति न तोङते होते, तो जोशी जोशियों में, मेहरोत्रा मेहरोत्रों में, और कपूर कपूरों में ही विवाह करता। पर ये सब इससे बाहर विवाह करते हैं।