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पृष्ठ:ज्ञानकोश भाग 1.pdf/२४९

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अना ज्ञानकोश (अ) २३० अनागतवश इस शब्दका प्रत्यक्ष सम्बन्ध संस्कृतके | गंर्धववंशमें लिखा है कि भावी बुद्ध मेत्तयके विषय 'अनाहत' शब्दसे है. जिसका अर्थ है, जिस में १४२ पद्य खण्डोंका एक काव्य कश्यपने पर किसी प्रकारका प्राधात न किया गया हो' लिखा था। उसके लिखनेसे यह स्पष्ट प्रतीत होता किन्तु कबीरदासकी रचनाओमें यह शब्द जिस है कि सौसन वंशदीपके चोल साम्राज्यमें रहता अर्थमें प्रयुक्त हुआ है, इससे और मूल संस्कृत था। इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि शब्दके अर्थमें किसी भी प्रकार का साम्य मालूम | सौसन कांचिपूर में न रहता होगा। यदि सौसन नहीं पड़ता । . कबीरदासकी रचनाओं में यह कांचिपूरमें रहता होता तो ग्रंथकर्त्ताने 'चोलख्या शब्द दो भिन्न भिन्न अर्थोका द्योतक है। यह कहने नाम की जगह काँचीपूर नामका प्रयोग किया की आवश्यकता नहीं कि कबीरदास एक उच्च | होता। यह अनुमान करना कि वुद्धवंशका भी कोटिके हठयोगी भी थे और स्थान स्थान पर यही कर्ता है सवेथा भूल है । कश्यप के समय उन्होंने अपने काव्यमै हठयोगके पारिभाषिक अथवा उसके ग्रंथके सम्बन्धमें कुछ भी ज्ञात नहीं शब्दो और हठयोगजनित भावों की व्यञ्जना की है। उपतिस्स ने अनागत वंश पर टीका की है। है। अनहद उनकी रचनाओं में कहीं कहीं पर लोगों का कहना है कि यह उपतिस्स ७० ई० में 'मूलाधार' 'स्वाधिष्ठान' "मणिपुर' श्रादि शरीरके सिंहलद्वीपमें लिखे गये 'महाबोधिवंश'का कत्ती आभ्यन्तरिक छः चक्रोमें से एक के लिये प्रयुक्त होगा।भावी धुद्ध मेत्तेय पर बौद्ध लोगोंका विश्वास हुश्रा है, और कहीं कहीं पर यह एक प्रकार की होनेसे इस वंशका महत्व बहुत बढ़गया। घर उस मधुर ध्वनिके लिये प्रयुक्त हुश्रा है जो योगी इसका काल निश्चित रूपसे न मालूम होना बड़े को उस समय सुनाई देतो है जब वह अपनी दुखका विषय है। निकायमें लिखा है कि भावी साधनामे बहुत ऊँचे उठ जाता है। कहते हैं बुद्ध उत्पन्न होगे परन्तु एकके सिवाय और किसी कि इस मधुर और शान्ति-दायक स्वरका उस निकाय या पिटकमें मेत्तेयका उल्लेख नहीं है। ध्वनि से बहुत कुछ साम्य है जो दोनों कानोंको बुद्धवंशके अन्तमें यह नाम मिलता अवश्य है पर अँगूठोंसे बन्द करने पर सुनाई देती है। यह मूलग्रंथमें न होकर पीछेसे जोड़ा हुआ अना-यह नगर युफ्रेटीस ( Euphrates) प्रतीत होता है। 'नेत्ती' प्रकरणमें भी मेत्तेयका नदीके तीर पर बसा हुआ है। वैबिलोनियन लेख | नाम नहीं है। ऊपर जिस अपवादात्मक ग्रंथ का ( ई० पू० २२०० के लगभग का ) में इसका उल्लेख उल्लेख है वह दीघनिकाय है। उसके छब्बीसवें हनाट नामसे किया है। असुर नाजिरपाल का सम्वादमै बुद्धने भविष्य वाणी की है कि मेत्तेय के लेखक इसे ( ई० पू० -७६) अनार' नाम देता है। सहस्रो अनुयायी होगे परन्तु केवल सैकड़ों यूनान तथा रोमन लेखक इसे 'अनाथा' के नामसे समझता हूँ । महावस्तू में यह कथा बहुत प्रचलित लिखते हैं। अरब लेखोंमें इसका उल्लेख 'अना' है। उसमें ग्यारह बारह मेत्तयका वर्णन श्राया । लगभग सभी लेखकोका यह है। दो, तीन लेखोंमें तो उसका पूर्ण वर्णन किया मत है कि यह नगर एक टापूपर बसा हुआ था। है। उसकी केतुमती नगरीके विस्तारका वर्णन यह निश्चय पूर्वक्र नहीं कहा जा सकता कि बैबी- | अनागत वंशसे मिलता जुलता है (महावस्तु ३, लोनियन साम्राज्यकालमें अनाकी स्थिति कैसी २४०-अनागत वंश =) पर और बातों में वे भिन्न हैं। थी, किन्तु फिर भी ई० पू० ३००० के पत्रमें भी इस ग्रंथसे तीन मुख्य बातोंका पता लगता इसका तथा इसके छः प्रसिद्ध नागरिकोका उल्लेख है:-(१) इस कथामें कुछ भी नवीनता नहीं हैं। सूही प्रदेशके विद्रोह तथा झगड़ों में आया है। इसकी कथा पूर्व बुद्ध की कथाके आधारपर अनाके निवासियोने ईरानकी चढ़ाई के समय | लिखी गई है, केवल संख्या बदल दी गई है। जुलियन बादशाहका सामना किया था। केम (२) मेत्तेय और पच्छिमीथ मसीहा (Messiha) नामक खलीफाने निर्वासन काल यहीं पर व्यतीत की कल्पनाओंमें साम्य दिखाने वाली बहुत सी किया था। अनेक लेखको तथा यात्रियोंने इसका | वात पाई जाती हैं। यद्यपि सभी कल्पनाएँ एक सी कुछ न कुछ वणन किया है। आधुनिक 'अना' नगर नहीं हैं फिर भी बहुत सी बातों में समानता पाई युफ्रेटीज़के दाहिने किनारे पर बसा है। अरबी जाती है। ऐसा वर्णन मिलता है कि मेत्तेयका कविने यहाँकी शराबका वर्णन तथा उसकी प्रशंसा | काल सुवर्णयुग था। उस समय राजा और मंत्री की है। यहाँ मामूली मोटा कपड़ा बनता है। जनता तथा राज्यकी ठीक व्यवस्था रखने अनागतवंश-(भविष्यकालको वंश परंपरा) | और सत्य की सदा विजयके लिये स्पर्धा करते थे। नामसे आता