सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुलसी की जन्म-दशा १५३ सय माता-पिता वजहदय होते हों या नहीं परंतु अभुक्त 'मूल में जन्मे हुए चालकों की भूलशांति और गोमुखप्रसव शांति विधि भी शास्त्रानुसार की जाती है। और जब गोस्वामी जी जन्म संवत् ही में विवाद है और कोई उसे १५५४, कोई १५८३ कोई १५८९, और कोई १६००-१६१० बतलाते हैं और मास-दिवस का कुछ पता ही नहीं तो अभुक्त मूल की बात उठानी ही अनुचित है। क्या किसी धर्प, किसी मास, किसी दिवस में इनका जन्म क्यों न हुआ हो 'भभुक्त मूल इनके पीछे लगा ही हुआ था? यह तो बड़ा आश्चर्यजनक कौतुक्र है। जो लोग भभुक्त मूल' की कथा कहते हैं उन्हें प्रथम स्वामी जी की जन्म- कुंडली हस्तगत करके उसे सर्वसाधारण को दृष्टिगोचर कराना चाहिए । [श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन-चरित्र, पृष्ठ १४ ] और प्रायः इसी विचार को पुष्ट करते हुए श्री रामनरेश त्रिपाठी जी भी लिखते हैं- यहीं पर यह बात भी हमें हल कर लेनी चाहिए कि तुलसीदास ने कवितावली में जो यह लिखा है- जायो कुल मंगन वधावनो बनायो तुनि पाप परिताप भयो जननी जनक को। इसका अभिप्राय क्या है ? इसमें आए हुए 'पाप' शब्द से कुछ लोग तर्क करते हैं कि वे संभवतः पाप की संतान थे। यद्यपि यह बात एक साधारण बुद्धिचाला भी समझ सकता है कि पाप की संतान को जन्म देने का लांछन केवल माता पर लगाया जा सकता है, पिता तो .इस विषय में प्राय: अनभिज्ञ ही रहता है। अतएव उसे परिताप क्यों होगा! मंगन कुल में जन्म लेने की पात पर तो यह अनुमान क्रिया. जा सकता है कि वे भिक्षुफ ब्राह्मण के कुलर में जन्मे थे। पर उनके जन्म से उनके माता-पिता को पाप और परिताप क्यों हुआ? कुछ