। ७—तुलसी की जीवन-यात्रा तुलसी की जीवन-यात्रा किस प्रकार समाप्त हुई, इसको सभी लोग थोड़ा बहुत जानते हैं। स्वयं तुलसीदास भी अपनी रचनाओं में अपने राम से बहुत कुछ कहते रहते हैं, परिचयः किंतु तो भी यह कहना अत्यंत कठिन है कि वास्तव में सब मिलाकर तुलसी का रूप क्या घनता है। लीजिए, तुलसी का एक पद है- राम को गुलाम नाम रामबोला राख्यो राम, काम यहै नाम द्वै हौं कबहूँ फहत हौं । रोटी लूगा नीके राखें, आगे हू. को वेद भा भलो है है तेरो, तार्ते आनँद लहत हौं । बाँधो हौं करम जड़ गरम गूढ़ निगड़, सुनत दुसह हौं तो साँसति सहत हौं । भारत-अनाथ नाथ कोसलपाल *कृपाल लीन्हों छीनि दीन देख्यो दुरित दहत हौं । बूझ्यो ज्यों ही, कह्यो, 'मैं हूँ चेरो खै हौ रावरोजू, मेरो कोऊ फहूँ नाहि, चरन गहत हौं । मीनो गुरु पीठ अपनाइ गहि बाँह बोलि, सेवक - सुखद सदा बिरद बहत हौं । लोग कहें पोचु, सो न सोचु न सँकोचु, मेरे व्याह न बरेखी, जाति पाँति न चहत हौं। . तुलसी अकाज काज राम ही के रीझे खीझे, प्रीति की प्रतीति सन मुदित रहत हौं ॥७६|| [विनयपत्रिका ]