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पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२६१

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२५८ तुलसी की जीवन-भूमि जी। स्मरण रहे कि सरयू-सरयू नदी का नाम घाघरा और देहया भी है । यह नदी गुठनी के पास गियासपुर से लेकर गंगा के संगम तक जिले की दक्षिण पच्छिम सीमा का काम करती है। इस जिले में इसकी लंबाई ६० मील है। इसके किनारे रिवीलगंज, दरौली, माझी और ढोनेगद आदि मुख्य स्थान हैं। जिले का मुख्य नगर छपरा इसी नदी से कई मील पर ही है। नदी में नावें वरावर चला करती हैं। पटना से अयोध्या तक छोटा स्टीमर चलता है जो मुसाफिरों और मालों को ढोता है। इस नदी में मामूली नावें नेपाल की सीमा तक चली जाती हैं। इस जिले में झरही, खनवाँ भौर दाहा.इसकी सहायक नदियाँ हैं। [विहार-दर्पण, पृष्ठ ४३६१ श्री गदाधरप्रसाद अंवष्ठ जी ने 'सरयू' का जो परिचय दिया है उसमें 'घाघरा' का नाम भी आ गया है। परंतु क्या अँगरेजी शासन के पहले की कोई सानी किसी के पास है जो सिद्ध कर दे कि 'अयोध्या के आगे भी इसका नाम 'घाघरा' चलता था ? नहीं, ऐसा प्रमाण उपलब्ध कहाँ ? निदान राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू "का ध्यान इधर जाना चाहिए और अपनी संस्कृति की इस पुनीत धारा का नाम 'सरयू' ही प्रमाणित करना चाहिए । कारण यह कि वह, स्वयं ही इसी काँठे के प्राणी होने के नाते, इसे खूब जानते हैं। फिर कर कंगन को आरसी क्या ? सरयू की इस कथा से अब विश्वास हो जाना चाहिए कि 'नाम' का जीवन में बड़ा महत्त्व है और इसी से शासक की कूट दृष्टि भी उस पर बनी रहती है। अयोध्या' नाम में अयोध्या जो शक्ति है वह नाम ही में नहीं, उस धाम में भी है। कारण यह कि- अयोध्या का नाम सात तीर्थों में सबसे पहले आया है- . -