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पृष्ठ:दासबोध.pdf/३९९

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दासबोध। . [ दशक १२ ॥ २३ ॥ यदि कहीं दुर्जन या दुष्ट मिल जाय' और अपने से क्षमा न करते बने तो साधक को वहां से तुरंत ही चुपके से चल देना चाहिए ॥२४॥ लोग नाना प्रकार की परीक्षाएं तो जानते हैं। परन्तु दूसरे का मन पर- खना नहीं जानते; इसी कारण ये लोग दुःख पाते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं ॥ २५ ॥ अपने को एक दिन मरना है, इस लिए भलमंसी से चलना चाहिए। विवेक का लक्षण कठिन है ॥ २६ ॥ छोटे हों, बड़े हो, बरावर बाले हों, अपने हों, पराये हों, कोई हों; सब से धनी मित्रता रखनी चाहिए ॥ २७ ॥ यह तो सभी जानते हैं कि, अच्छे का नतीजा अच्छा होता है; अब और अधिक क्या बतलाना है ? ॥२८॥ हरि-कथा तथा अध्यात्म-निरूपण करना चाहिए और महत्व पूर्ण राजनैतिक विषयों की ओर भी ध्यान देना चाहिए; परन्तु बिना प्रसंग देखे कुछ भी ठीक नहीं है ॥ २६ ॥ कोई बहुत विद्या सीखा हुअा है; पर अवसर नहीं जानता तो फिर ऐसी विद्या को कौन पूछता है ? ॥ ३० ॥ तीसरा समास-ईश्वर और भक्त । ॥ श्रीराम ॥ पृथ्ची के सम्पूर्ण लोगों को विवेक से चलना चाहिए और इहलोक तथा परलोक, दोनों का अच्छी तरह विचार करना चाहिए ॥ १॥ इह- लोक साधने के लिए ज्ञाता की संगति करना चाहिए और परलोक साधने के लिए सद्गुरु चाहिए ॥२॥ सद्गुरु तो चाहिए; परन्तु पहले यही नहीं मालूम होता कि, उससे पूछा क्या जाय ! अच्छा, वास्तव में पहले अनन्य भाव से उससे दो बातें पूछना चाहिए ॥ ३॥ वे दो बातें कौन है ? वे ये हैं कि, 'ईश्वर' कौन है और हम' कौन हैं-इन दो बातों का किया हुआ ही विवरण बार बार करना चाहिए ॥४॥ पहले यह देखना चाहिये कि, मुख्य ईश्वर कौन है; फिर यह देखना चाहिए कि, 'हम' जो भक्त हैं सो कौन हैं । पंचीकरण और महावाक्य का विवरण बार बार करना चाहिए ॥५॥ सब कुछ करने का तात्पर्य यही है कि निश्चल और शाश्वत को पहचाने और इस बात का केवल विचार करे कि, 'हम' कौन हैं ॥ ६॥ सारासार का विचार करने से जान पड़ता है कि, किसी भी 'पद' में शाश्वतता नहीं है । अतएव, पहले सब का.कारण जो भगवान है उसे पहचानना चाहिए ॥ ७॥ निश्चल,