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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१४९

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सादगी पर उसकी, मरजाने की हसरत, दिल में है
बस नहीं चलता, कि फिर ख़ंजर कफ-ए-क़ातिल में है

देखना तक़रीर की लज़्ज़त, कि जो उसने कहा
मैने यह जाना, कि गोया यह भी मेरे दिल में है

गरचे: है किस किस बुराई से, वले बा ई हमः
जिक्र मेरा, मुझसे बेहतर है, कि उस महफ़िल में है

बस, हुजूम-ए-ना उमीदी, ख़ाक में मिल जायगी
यह जो इक लज़्ज़त हमारी स‘अि-ए-बे हासिल में है

रँज-ए-रह क्यों खेंचिये, वामान्दगी को ‘अिश्क़ है
उठ नहीं सकता, हमारा जो क़दम मंज़िल में है

जल्वः ज़ार-ए-आतश-ए-दोज़ख़, हमारा दिल सही
फ़ितन:-ए-शोर ए-क़यामत, किसकी पाब-ओ-गिल में है


है दिल-ए-शोरीदः-ए-ग़ालिब, तिलिस्म-ए-पेच-ओ-ताब
रह्म कर अपनी तमन्ना पर, कि किस मुश्किल में है