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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१६३

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देते हैं जन्नत, हयात-ए-दह्र के बदले
नश्शः ब अन्दाजः-ए-ख़ुमार नहीं है

गिरियः निकाले है तिरी बज़्म से, मुझको
हाय, कि रोने प इख़्तियार नहीं है

हम से, 'अबस है, गुमान-ए-रँजिश-ए-खातिर
खाक में 'अुश्शाक की गुबार नहीं है

दिल से उठा लुत्फ़-ए-जल्वःहा-ए-म‘आनी
ग़ैर-ए-गुल, आईनः-ए-बहार नहीं है

क़त्ल का मेरे किया है 'अह्द तो बारे
वाय, अगर 'अह्द उस्तुवार नहीं है

तू ने क़सम मैकशी की खाई है, ग़ालिब
तेरी क़सम का कुछ ए‘तिबार नहीं है

१७२


हुजूम-ए-ग़म से, याँ तक सरनिगूनी मुझको हासिल है
कि तार-ए-दामन-ओ-तार-ए-नज़र में फ़र्क मुश्किल है

रफ़ू-ए-ज़ख़्म से मतलब है लज़्जत ज़ख़्म-ए-सोज़न की
समझियो मत, कि पास-ए-दर्द से, दीवानः ग़ाफ़िल है