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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/७८

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लेता, न अगर दिल तुम्हें देता, कोई दम चैन करता, जो न मरता कोई दिन, आह-ओ-फुगाँ और पाते नहीं जब राह, तो चढ़ जाते हैं नाले रुकती है मिरी तब , तो होती है रवाँ और हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे कहते हैं, कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए-बयाँ और सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईनः है, सामान-ए - रंग आख़िर तराय्युर आब-ए-बर जा माँदः का, पाता है रँग अाखिर न की सामान-ए-'त्रैश-यो-जाह ने तबीर वहशत की हुया जाम-ए-ज़मरुद भी मुझे, दाग़-ए-पलँग आखिर जुनूँ की दस्तगीरी किस से हो, गर हो न 'अरियानी गरीबाँ चाक का हक़ हो गया है, मेरी गर्दन पर बरंग-ए-काग़ज़-ए-पातश जदः नैरंग-ए-बेताबी हजार आईनः दिल बाँधे है बाल-ए-यक तपीदन पर