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तिबत

हुआ । बहुत दिनों तक उसने अपना काम बड़ी योग्यता से किया। ५२ वर्ष की उम्र में वह रूस के दक्षिणी प्रान्तों में चन्दा एकत्र करने के इरादे से गया। उन प्रान्तों में बहुत से बौद्ध रहते हैं। यह बात १८९८ की है। इस सम्बन्ध में उसे सेंटपिटर्सबर्ग को भी जाना पड़ा। वहां रूसियों ने हेल मेल पैदा करके उसे अपने वश में कर लिया। उसको उसका कर्तव्य अच्छी तरह समझा दिया गया। वह रूस की तरफ से बहुत सी वेशकीमती चीजें दलाय लामा को उपहार में लाया। लामा महोदय उपहार से बहुत प्रसन्न हुए। घोमङ्ग ने कहा कि यदि आप एक बार सेंटपिटर्सबर्ग पधारे तो तिबत और रूस में हार्दिक मैत्री हो जाय ; तिबत की रक्षा का भार रूस अपने सिर लेले और सम्भव है, ज़ार महोदय-किरिस्तानी मत छोड़ कर बौद्ध हो जाय ; क्योंकि किरिस्तानी मत में उनका बहुत कम विश्वास है ! लामा ने इस बात को स्वीकार कर लिया ; उसने प्रसाद के तौर पर कुछ चीजें भी ज़ार को भेजी ; परन्तु उसका रूस की राजधानी को जाना दूसरे धर्माध्यक्ष को पसन्द नहीं आया । इससे दलाय लामा को वह विचार छोड़ना पड़ा।

घोमंग लोवजंग को किसी कारण से फिर रूस जाना पड़ा। फिर भी रूसियों ने उसे काँपे में फांसा । इस बार वह एक पत्र जार की तरफ़ से लाया जिस में लामा महोदय को यह सुझाया गया कि वे अपना वकील सेंटपीटर्सबर्ग को भेजें, रूस से बाला बाला पत्र-व्यवहार करें और चीन की आधीनता छोड़ कर स्वतन्त्रता पूर्वक रूस से सम्बन्ध रक्खें। लामा ने यह बात मंजूर की। सन्निद नामक एक प्रसिद्ध महन्त वकील बनाया गया। घोमंग के साथ वह सेंटपीटर्सबर्ग गया। उसने