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पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३१

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यानी जिस तरह हो चपला को पकड़ना और ऐसी जगह छिपाना कि जहां पता न लगे और अपने ऊपर भी किसी को शक नहो। ये दोनों आपुस में धीरे धीरे बातें करते चले जा रहे थे, थोड़ी देर में जब महल के अगले दरवाजे के पास पहुँचे तो देखा कि केतकी जो कुमारी चन्द्रकान्ता की लौडी है सामने से चली आ रही है। तेजसिंह ने भी जो केतकी के वेष में चले जा रहे थे. नाजिम और अहमद को देखते ही पहिचान लिया और सोचने लगे कि भले मौके पर ये दोनों मिल गये हैं और अपनी भी सूरत अच्छी तरह है, इस समय इन दोनों से कुछ खेल करना चाहिए और बन पड़े तो दोनों नहीं एक को तो जरुर ही पकड़ना चाहिए। तेजसिंह जान बूझ कर इन दोनों के पास से होकर निकले। नाजिम और अहमद भी यह सोच कर उसके पीछे हो लिये कि देखें कहाँ जाती है। नकली केतकी (तेजसिंह ) ने फिर कर देखा और कहा, "तुम लोग मेरे पीछे क्यों चले आ रहे हो? जिस काम पर मुकर्रर हो उस काम को करो ! अहमद ने कहा, "किस काम पर मुकर्रर है और क्या काम करें? तुम क्या जानती हो?" केतकी ने कहा, "मैं सब जानती हूँ ! तुम वही काम करो जिस में चपला के हाथ की जूतियाँ नसीब हो ! जिस जगह तुम्हारी मददगार एक लौंडी तक नहीं है वहांतुम्हारे किए क्या होगा ?" नाजिम और अहमद केतकी की बात सुनकर दंग हो गये और सोचने लगे कि यह तो बड़ी चालाक मालूम होती है. अगर हम लोगों के मेल में आ जाय तो बड़ा काम निकले और इसकी बातों से मालूम होता है कि कुछ लालच देने पर हम लोगों का साथ देगी। नाजिम ने कहा, "सुनो केतकी, हम लोगों का तो काम ही चालाकी करने का है। हम लोग अगर पकड़े जाने और मरने मारने से डरें तो कभी काम न चले, इसी की पैस खाते है. बात की बात में हजारों रुपये इनाम मिलते हैं, खुदा की मेहरबानी से तुम्हारे ऐसे मददगार भी मिल जाते हैं जैसे आज तुम मिल गई अब तुमको भी मुनासिब है कि हमारी मदद करो. जो कुछ हमको मिलेगा उसमें से हम तुमको भी हिस्सा देंगे।" केतकी ने कहा, "सुनो जी में उम्मीद के ऊपर जान देने वाली नहीं हूं, वे कोई दूसरे होंगे. मैं तो पहले लेकर काम करती हूँ बस इस वक्त कुछ मुझको दो तो मैं अभी तेजसिंह को तुम्हारे हाथ गिरफ्तार करा दूं, नहीं तो जाओ जो कुछ करते हो करो।" तेजसिंह की गिरफ्तारी का नाम सुनते ही इन दोनों की तबीयत खुश हो गई। नाजिम ने कहा, “अगर आज तेजसिंह को पकडा दो तो जो कहो हम तुमको दूँ! केतकी-एक हजार रुपये से कम में हरगिज न लूँगी अगर मंजूर हो तो लाओ रुपये मेरे सामने रक्खो। नाजिम-अब इस वक्त मैं आधी रात को कहाँ से रुपये लाऊँ, हाँ कल जरुर दे दूंगा। केतकी-ऐसी बातें मुझसे न करो, मैं पहले ही कह चुकी हूँ कि उधार सौदा नहीं करती, लो मैं जाती हूँ। नाजिम-(आगे से रोक कर ) सुनो:तो. तुम खफा क्यों होती हो? अगर तुमको हम लोगों का एतबार न हो तो तुम इसी जगह टहरो, हम लोग जाकर रुपये ले आते हैं। केतकी-अच्छा एक आदमी यहाँ मेरे पास रहो और एक आदमी जाकर रुपये ले आओ नाजिम अच्छा अहमद यहाँ तुम्हारे पास ठहरता है, मैं जाकर रुपये ले आता हूं। काह कर नाजिम ने अहमद को तो उसी जगह छोड़ा और आप खुशी खुशी रसिंह की तरफ रुपये लेने को चला। नाजिम के चले जाने के बाद थोड़ी देर तक केतकी और अहमद इधर उधर की बाते करते रहे। बात करते करते कोतकी ने दो चार इलाइची बदुए से निकाल कर अहमद को दी और आप भी खाई। अहमद को तेजसिंह के पकड़े जाने, की उम्मीद में इतनी खुशी थी कि कुछ सोच न सका और इलायची खा गया, मगर थोड़ी ही देर बाद उसका सर घूमने लगा। तब वह समझ गया कि बेशक यह कोई ऐयार (चालाक) है जिसने धोखा दिया। झट कमर से खन्जर खींच बिना कुछ कहे केतकी को मारा, मगर केतकी पहिले से होशियार थी, दॉग बचा कर उसने अहमद की कलाई पकड़ ली जिससे अहमद कुछ न कर सका बल्कि जरा ही देर बाद बेहोश होकर गिर पड़ा। तेजसिंह ने उसकी मुश्के बाँध कर चादर में गठरी कसी और पीठ पर लाद नौगढ़ का रास्ता लिया। खुशी के मारे जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते चले गये यह भी खयाल था कि कहीं ऐसा न हो कि नाजिम आ जाय और पीछा करें। इधर नाजिम रुपये लेने के लिए गया तो सीधे करसिंह के मकान पर पहुंचा। उस वक्त क्रूरसिंह गहरी नींद में सो रहा था। जाते ही नाजिम ने उसको जगाया। क्रूरसिह ने पूछा, "क्या है जो इस वक्त आधी रात के समय आकर मुझे उठा रहे हो?" देवकीनन्दन खत्री समग्र