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पृष्ठ:देवांगना.djvu/४८

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उसने एक बड़ा-सा फूल उसकी डोलची में से उठाकर, उसके जुड़े में खोंस दिया। और उसके कन्धे पर हाथ धरकर कहा :

"तुम्हारा नाम?"

"मंजुघोषा, पर तुम 'मंजु' याद रखना, और तुम्हारा प्रिय?"

"मैं भिक्षु धर्मानुज हूँ।"

"धर्मानुज?"

एक हास्यरेखा उसके होंठों पर आई और एक कटाक्ष दिवोदास पर छोड़ती हुई वह वहाँ से भाग गई।

सुखदास ने कहा—"भैया, यह बड़ी अच्छी लड़की है।"

"पितृव्य, तुम सदा उस पर नजर रखना, उसकी रक्षा करना, उसे कभी आँखों से ओझल नहीं होने देना, मुझे उसकी खबर देते रहना।"

सुखदास ने हँसकर कहा—"फिकर मत करो भैया, इसी से तुम्हारी सगाई कराऊँगा।"

सुखदास एक गीत की कड़ी गुनगुनाने लगा।