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पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/११३

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९८ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र भाषा में शुद्ध नाम तक लिखना नहीं आता, वह उस भाषा में पाठ्यपुस्तकें तैय्यार करै। लक्षाधिप होने पर भी अपनी तमाम किताबों और 'पण्डिता' अखबार का रुपया विद्यालय फण्ड में नहीं देते, इन सबका कापीराइट उन्होंने अपने ही अधीन रक्खा है। इतने पर भी विद्यालय कमिटी ऐसी रद्दी पुस्तकों का उठाना पसन्द नहीं करती। यही नहीं किन्तु 'पाठावली प्रथम भाग-बालोद्यान संगीत' (?) और 'पण्डिता' अखबार को पंजाब गवर्नमेंट ने मंजूर किया है। अब ला देवराज ने ला० मुन्शीराम से सन्धि कर ली है और अपनी पुस्तकों को और पत्र को इसी प्रेस में छपाना प्रारम्भ किया है। अब कुछ उनकी शुद्धि पर भी ध्यान होने लगा है। मेरी आपसे सानुरोध और सविनय प्रार्थना है कि इन पुस्तकों की समालोचना शीघ्र ही निकालिए और वह कम से कम इतनी तो हो जितनी हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की है। ____ समालोचना कृपाकर आप ही लिखिए। समालोचना लिखना केवल आपके ही हिस्से में आया है। कुछ डर नहीं यदि आपका अमूल्य समय इस महोपकारक काम में खर्च हो जायः । कृपया अबोध बालिकाओं का पीछा इन दुष्ट पुस्तकों से छुड़ाइए। ___ अच्छी तरह खबर लीजिए। यदि आप शिष्टाचार और पूर्व परिचय के अनु- रोध से अपना नाम न देना चाहें तो मेरा नाम दे दीजिए। मैं, इस बात की परवा नहीं करता। 'सरस्वती' में निकलने के पीछे समालोचना को पृथक् पुस्तकाकार छपवा कर वितीर्ण करने का प्रबंध मैं करूंगा। अब आप इसमें देर न कीजिए। समालोचना जनवरी तक निकल जानी चाहिए। आपका दयाभिलाषी- पद्मसिंह ओम् जालन्धर शहर ४-१२-०५ श्रीमत्सु श्रास्पदेषु प्रणतयः .: मैं २३-११-- से.३० तक लाहौर रहा। वापस आकर आपका कृपापत्र मिला। __ठाकुर शिवरत्नसिंह जी से अनुवाद के विषय में पूछा। वे कहते हैं कि हम