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पृष्ठ:नव-निधि.djvu/१२१

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नव-निधि

नाई और कहार ख़िदमत को आये, किन्तु लौटा दिये गये। अहीरों के घरों से दूध से भरा हुआ एक मटका आया, वह भी वापस हुआ। तमोली एक ढोली पान लाया, किन्तु वह भी स्वीकार न हुआ। आसामी आपस में कहने लगे कि कोई धर्मात्मा पुरुष आये हैं। परन्तु चपरासियों को तो ये नई बातें असह्य हो गई। उन्होंने कहा- हुजर, अगर आपको ये चीजें पसन्द न हो तो न लें, मगर रस्म को तो न मिटायें। अगर कोई दूसरा आदमी यहाँ आयेगा तो उसे नये सिरे से यह रस्म बाँधने में कितनी दिक्कत होगी ? यह सब सुनकर पण्डितजी ने केवल यही उत्तर दिया-जिसके सिर पर पड़ेगा वह भुगत लेगा। मुझे इसकी चिन्ता करने की क्या आवश्यकता ? एक चपरासी ने साहस बाँधकर कहा-इन असामियों को आप जितना गरीब समझते हैं उतने गरीब ये नहीं हैं। इनका ढंग ही ऐसा है। भेष बनाये रहते हैं। देखने में ऐसे सीधे सादे मानो बेसिंग की गाय हैं, लेकिन सच मानिए, इनमें का एक-एक श्रादमी ह ईकोरट का वकील है।

चपरासियों के इस वाद-विवाद का प्रभाव पण्डितजी पर कुछ न हुआ उन्होंने प्रत्येक गृहस्थ से दयालुता और भाईचारे का आचरण करना प्रारम्भ किया। सबेरे से आठ बजे तक तो गरीबों को बिना दाम औषधियाँ देते, फिर हिसाब-किताब का काम देखते । उनके सदाचरण ने असामियों को मोह लिया। मालगुजारी का रुपया, जिसके लिए प्रतिवर्ष कुरकी तथा नीलाम की आवश्यकता होती थी,इस वर्ष एक इशारे पर वसूल हो गया। किसानों ने अपने भाग सराहे और वे मनाने लगे कि हमारे सरकार की दिनोदिन बढ़ती हो।

कुँवर विशालसिंह अपनी प्रजा के पालन-पोषण पर बहुत ध्यान रखते थे। वे बीज के लिए अनाज देते और मजूरी और बैलों के लिए रुपये। फसल कटने पर एक का डेढ़ वसूल कर लेते चाँदपार के कितने ही असामी इनके ऋणी थे। चैत का महीना था फ़सल कट-फटकर खलियानों में आ रही थी। खलियान में से कुछ नाज घर में आने लगा था। इसी अवसर पर कुँवरसाहब ने चाँदपारवालों को बुलाया और कहा-हमारा नाज और रुपया बेगक़ कर दो।यह चैत का महीना है। जब तक कड़ाई न की आय, तुम लोग डकार नहीं लेते। इस तरह काम नहीं चलेगा। बूढ़े मलूका ने कहा-सरकार, भला असामी