पृष्ठ:नाट्यसंभव.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४
नाट्यसम्भव।


के यज्ञादिक वैदिक कर्म का अनुष्ठान करते हैं, उन्हीं को पूरा पूरा फल मिलता है। पर जो लालची लाभ वश बड़े मनोरथों को सोच कर यज्ञ करते हैं, उन्हें बड़ी विघ्न वाधा और विपत्ति झेलनी पड़ती है। यदि सब विघ्नादिकों से छुटकारा पाकर सांगोपाल कर्म समाप्त हुआ तब तो अवश्य वान्छित फल मिला, नहीं तो खाली परिश्रमही हाय लगता है और उलटा नरक वास जो होता है सो घलुए में। अतएव ज्ञानी लोग वेद के तात्पर्य को समझ कर कामना रहित वैदिक कर्म करते हैं।

दमनक। (मन में) ओ बाबा! इसमें बड़ा बखेड़ा भरा है। तो फिर भला हमारे फूटे भाग्य में यह सुख कहां? इतनी झंझट उठाने पर भी जल्दी पूरा २ फल नहीं मिलता और नरक जो मिलता है सो नाना दक्षिणा में (प्रगट) अच्छा गुरुजी अब हम सङ्गीत और साहित्य*[१] ही से अपना सन्तोष कर लेंगे। क्योंकि इसमें नरक उरक का तो झगड़ा नहीं लगा है। और वेद की कठिनाई के आगे तो यह विद्या सहज भी है।


  1. * अथातः साहित्यं व्याख्यात्यामः। सद्य कविकल्पनाविश्वप्रसूनेरादिकारणमूतपदार्यानां संहतिरेव (साहिन्यम्) यथाह सुबन्धुः "कवित्वसम्पादनोपयोगिवस्तुसमूहसंहतिरेव साहित्यम्।