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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/११९

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कन्यादान

आहुति हृदय-कमल के अपण के रूप में दी जाती है। सच्चा कुलपुरोहित तो वह है जो कन्या-दान के मंत्र पढ़ने से पहले ही यह अनुभव कर लेता है कि आध्यात्मिक तौर से पति और पत्नी ने अपने आपका परस्पर दान कर दिया।

आर्य-आदर्श के भग्नावशिष्ट अंश

भारतवप में वैवाहिक आदर्श को इन जाति-पाति के बखेड़ो ने अब तक कुछ दृट्टी फुटी दशा में बचा रखा है। कभी कभी इन बूढ़, हठी और छ छ करनेवाले लोगा को लेखक दिल से आशीर्वाद दिया करता है कि इतने कष्ट भलकर भी इन लोगों ने कुछ न कुछ तो पुराने आदशो नमूने बचा रखे हैं। पत्थरों की तरह ही मही. खंडहरों के टुकड़ों की तरह ही सही, पर ये अमूल्य चिह्न इन लोगों ने रुई में बाँध बाँधकर, अपनी कुबड़ी कमर पर उठा. कुलियों की तरह इतना फासला तै करके यहाँ तक पहुँचा तो दिया। जहाँ इनके काम मृढ़ता से भरे हुए ज्ञात होत हैं, वहाँ इनकी मुर्खता की अमालता भी साथ ही साथ भाषित हो जाती है। जहाँ ये कुछ कुटिलतापूर्ण दिखाई देते हैं वहाँ इनकी कुटिलता का प्राकृतिक गुण भी नजर आ जाता है कई एक चीजें, जो भारतवर्ष के रस्मोरवाज के खंडहरों में पड़ी हुई हैं, अत्यंत गभीर विचार के साथ देखने योग्य हैं। इस अजायबघर में से नए नए जीत जागत आदर्श सही सलामत निकल सकते हैं । मुझे ये खडहर खूब भाते हैं। जब कभी