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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१४६

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१०६ निबंध-रत्नावली करना था मैंने कर दिया; जो अब तुम्हारी इच्छा हो, करो। मैं सत्य की चट्टान पर खड़ा हूँ।" इस छोटे से संन्यासी ने वह तूफान योरप में पैदा कर दिया जिसकी एक लहर से पोप का सारा जंगी बेड़ा चकनाचूर हो गया। तूफान में एक तिनके की तरह वह न मालूम कहाँ उड़ गया। महाराज रणजीतसिंह ने फौज से कहा-"अटक के पार जाओ।" अटक चढ़ी हुई थी और भयंकर लहरें उठी हुई थीं। जब फौज न कुछ उत्साह प्रकट न किया तब उस वीर को जरा जोश आया । महाराज ने अपना घोड़ा दरिया में डाल दिया। कहा जाता है कि अटक सूख गई और सब पार निकल गए। तमाम दुनिया में जंग के सब सामान जमा हैं। लाखों श्रादमी मरने-मारने को तैयार हो रहे हैं । गोलियाँ पानी की बूंदों की तरह मूसलधार बरस रही हैं। यह देखो, वीर को जोश आया। उसने कहा-"हाल्ट' (ठहरो ।। फौज नि:स्तब्ध होकर सकते की हालत में खड़ी हो गई। पाल्प्स के पहाड़ों पर फौज ने चढ़ना ज्योंही असंभव समझ त्योंही वीर ने कहा-"पाल्स है ही नहीं फौज को निश्चय हो गया कि आल्प्स नहीं है और सब लोग पार हो गए ! एक भेड़ चरानेवाली और सतोगुण में डूबी हुई युवती कन्या के दिल में जोश आते ही कुल फ्रांस एक भारी शिकस्त से बच गया।