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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१६८

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निबंध-रत्नावली

बहरे को राग से क्या लाभ ? कविता, साहित्य, पीर, पैगंबर, गुरु, आचार्य , ऋषि आदि के उपदेशों के लाभ उठाने का यदि आत्मा में बल नहीं तो उनसे क्या लाभ ? जब तक जीवन का बीज पृथ्वी क मल-मूत्र के ढेर में पड़ा है, अथवा जब तक वह खाद की गरमी से अंकुरित नहीं हुआ और प्रम्फु- टित होकर उससे दो नए पत्ते ऊपर नहीं निकल आए, तब तक ज्योति और वायु उसके किस काम के ?

जगत के अनेक संप्रदाय अनदेखी और अनजानी वस्तुओं का वर्णन करते हैं ; पर अपने नेत्र तो अभी माया-पटल से बंद हैं-और धर्मानुभव के लिये मायाजाल मे उनका बंद होना आवश्यक भी है । इस कारण मैं उनके अर्थ कैसे जान सकता हूँ ? वे भाव-वे आचरण-जो उन आचार्यों के हृदय में थे और जो उनके शब्दों के अंतर्गत मौनावस्था में पड़े हुए हैं, उनके साथ मेरा संबंध जब तक मेरा भी आचरण उसी प्रकार का न हो जाय तब तक, हो ही कैसे सकता है ? ऋषि को तो मौन पदार्थ भी उपदेश दे सकते हैं; टूटे फूटे शब्द भी अपना अर्थ भासित कर सकते हैं, तुच्छ से भी तुच्छ वस्तु उसकी आँखों में उसी महात्मा का चिह्न है जिसका चिह्न उत्तम उत्तम पदार्थ हैं। राजा में फकीर छिपा है और फकीर में राजा । बड़े से बड़े पंडित में मुर्ख छिपा है और बड़ से बड़े मूर्ख में पंडित । वीर में कायर और कायर में वीर सोता है। पापी में महात्मा और महात्मा में पापी डूबा हुआ है।