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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१९७

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मजदूरी और प्रेम १५७. the tips of our fingers") जब तक धन और ऐश्वर्य की जन्म- दात्री हाथ की कारीगरी की उन्नति नहीं होती तब तक भारतवर्ष ही की क्या, किसी भी देश या जाति की दरिद्रता दूर नहीं हो सकती । यदि भारत की तीस करोड़ नर-नारियों की उँगलियाँ मिलकर कारीगरी के काम करने लगें तो उनकी मजदूरी की बदौ- लत कुबेर का महल उनके चरणों में आप ही आप आ गिरे। अन्न पैदा करना, तथा हाथ की कारीगरी और मिहनत से जड़ पदार्थो को चैतन्य-चिह्न से सुसज्जित करना, क्षुद्र पदार्थो को अमूल्य पदार्थों में बदल देना इत्यादि कौशल ब्रह्मरूप हो- कर धन और ऐश्वर्य की सृष्टि करते हैं। कविता, फकीरी और साधुता के ये दिव्य कला-कौशल जीते-जागते और हिलते डुलते प्रतिरूप हैं। इनकी कृपा से मनुष्य-जाति का कल्याण होता है। ये उस देश में कभी निवास नहीं करते जहाँ मज- दूर और मजदूर की मजदूरी का सत्कार नहीं होता; जहाँ शूद की पूजा नहीं होती। हाथ से काम करनेवालों से प्रेम रखने और उनकी आत्मा का सत्कार करने से साधारण मजदूरी सुदरता का अनुभव करानेवाले कला-कौशल, अर्थात् कारोगरी, का रूप हो जाती है । इस देश में जब मजदूरी का मादर होता था तब इसी आकाश के नीचे बैठे हुए मजदूरों के हाथों ने भगवान् बुद्ध के निर्वाण-सुख को पत्थर पर इस तरह जड़ा था कि इतना काल बीत जाने पर, पत्थर की मूर्ति के ही दर्शन से ऐसी शांति प्राप्त होती है जैसी कि स्वयं भगवान् बुद्ध के दर्शन से होती है।