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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२३१

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पवित्रता

दान के अर्थ यही मिलते हैं। बस ! एकदम बद कर दो दान देने को और रुपया जमा कर सकते हो तो करो। किसान की तरह अपना पसीना जमीन के अंदर निचोड़ जो कुछ दाने मिलते हैं उनको खाओ, स्वर्ग और ईशवर को अपने ताँबे और चाँदी के रुपयों और सोने के डालरों से खरीदने इधर उधर मत भागो। भूखे मर रहे हो, खुद खाओ और अपने बालबच्चों को खिलाओ और कुछ काल के लिये चुप हो जाओ। अपने बच्चों को विद्या दान दो, बुद्धि दान दो। यही तुम्हारा और यही ईश्वर का स्वर्ग है।

कहाँ हैं तुम्हारे साधु, जिनके हुकुम से हाथ बाँधे ये कलकत्ते के सेठ या पेशावर के ठेकेदार गुलाम फिर रहे हैं। अगर वे साधु हैं तो क्यों नहीं ब्रह्मतेज से इनका शासन करते ? क्यों नहीं ताड़ते ? उल्लुओं के स्वर्ग क्यों बनने देते हैं ? हे राम ! इनको क्या हो गया है कि सती स्त्रियों के गहने बिचवा बिचवा- कर अपना अमूल्य सिर छिपाने के लिये लाख लाख रुपयों की कुटिया बनवा रहे हैं जहाँ मार्कडेय ने अपनी सारी आयु तारों की धीमी धीमी रोशनी के नीचे काट दी ! कौन से क्षेत्रों से य रोटी खा रहे हैं? जहाँ गरीबों का लहू निचोड़ निचोड़ जालिम रोटियाँ बनवा रहे हैं ।

तप

बहुत उछले तो पवित्रता के साधन के लिये महाराज पतंजलि का ग्रंथ उठा लिया। होने लगे अब जप तप माला