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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२७८

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निबंध-रत्नावली

 परिचित देवकुल में भरत अपने 'पितुः प्रपितामहान्' का दर्शन करने जाता, वहाँ पर चिरदृष्ट तीन की जगह चार प्रतिमाओं को देखकर अपनी अनुपस्थिति की घटनाओं को जान लेता। इसका समाधान यह हो सकता है कि भास का भरत बहुत ही छोटी अवस्था में अयोध्या से चला गया हो और वहाँ के दर्शनीय स्थानों से अपरिचित हो। या कोई ऐसा संप्रदाय होगा कि पिता के जीते जी राजकुमार देवकुल में नहीं जाया करते हो । राजपूताने में अब भी कई जीवपितृक मनुष्य श्मशान में अथवा शोक सहानुभूति ( मातमपुर्सी) में नहीं जाते । राजवंश के लोग नई प्रतिमा के आने पर ही देवकुल में आवें ऐसी कोई रूढ़ि भी हो सकती है । अस्तु

भास का समय अभी निश्चित नहीं हुआ। पंडित गणपति शास्त्री से ईमवी पूर्व तीसरी-चौथी शताब्दी का, अर्थात् कौटिल्य चाणक्य से पहले का, मानते है छ। जायसवाल महाशय उसे ईसवी


  • पंडित गणपति शास्त्री ने पाणिनि-विरुद्ध बहुत से प्रयोगों को देखकर भास को पाणिनि के पहले का भी माना था। कौटिल्य से पहले का मानने में मान एक श्लोक है जो 'प्रतिज्ञायैगंधरायण' नाटक तथा 'अर्थशास्त्र दोनों में है। अर्थशास्त्र में भास के नाटक से उसे उद्धृत मानने के लिये उतना ही प्रमाण है 'जतना भास के नाटक में उसके अर्थशास्त्र से उद्धृत होने का । दूसरा मान प्रतिमानाटक में बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र का उल्लेख है, कौटिल्य का नहीं। किंतु यह कवि की अपने पात्रों की प्राचीनता दिखाने की कुशलता हो सकती है। मैंने