सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/३०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६०
निबंध-रत्नावली

या गुजरात के नागर ब्राह रणों, या नगर ( वडनगर, वृद्ध नगर) प्रांत की भाषा हो सकता है। गुजरात की अपभ्रंश-प्रधानता की चर्चा आगे है। किंतु उसके उस नगर का वडनगर या नगर नाम प्राचीन नहीं है इसलिये 'नगर की भाषा' अर्थ मानने पर मार्क य के व्याकरण की प्राचीनता में शंका होती है।

राजशेखर ने काव्यमीमांसा में कइ श्लोक दिए हैं जिनमें वर्णन किया है कि किस देश के मनुष्य किस तरह संस्कृत और प्राकृत पढ़ सकते हैं । यहाँ इस पाठशैली के वरन की चर्चा. कर देनी चाहिए । यह वर्णन रोचक भी है और कई वंशों में अब तक सत्य भी । उचारण का ढंग भी कोई चीज है। वह कहता है कि काशी से पूर्व की ओर जो मगध आदि देशों के बासी हैं वे संस्कृत ठीक पढ़ते हैं किंतु प्राकृत भाषा में कुंठित हैं 1 बंगालियो की हसी में उसने एक पुराना श्लोक उद्धृत किया है जिसमें सरस्वती ब्रह्मा से प्रार्थना करती है कि मैं बाज आई, मैं इस्तीफा पेश करती हूँ, या तो गौड़ लोग गाथा पढ़ना छोड़ दें, या कोई दूसरी ही सरस्वती बनाई जाय । गौड़ देश में ब्राह्मण न प्रतिस्पष्ट, न अश्लिष्ट, न रूक्ष, अतिकोमल, न मंद और न अतितार स्वर से पढ़ते हैं। चाहे कोई बस हो, कोई रीति हो, काई गुण हो, कर्णाट लोग घमंड


  • ब्रह.न् विशापयामि त्वां स्वाधिकारबिहासया ।

गंड उरुयज तु वा गाथामन्या वास्तु सरहती ।।