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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/६३

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अयोध्या


फरफार कब कब इनको झेलने पड़े, जिनसे ये कुछ की कुछ बन गई, इन सब बातों के जानने की जैसी हमारे इतिहास-रसिक पाठकों को जिज्ञासा है, वैसी ही इसके लिखने और निरूपण करने की हमारी उत्कंठा है । इसी लिये आज फिर पुराने इतिहास का चर्वितचर्वण किया चाहते हैं । देखें, यदि पाठकों को कहीं कुछ रस मिले । पर जो के उत्साह निकालने का अब कहीं भी कुछ सामान नहीं है, अर्थात् ऐतिहासिक ग्रंथ, लेख वा स्थान जैसे चाहिए वैसे विद्यमान नहीं रहे |

आर्य्यवंश की वीरता,विद्या,राजश्री और इन पुरियों की प्राचीन सामग्री जिनसे इतिहास का बहुत कुछ पता चल सकता था,सबकी सब भारत के अंतिम हिंदू सम्राट महाराज पृथ्वीराज की विशाल देह के साथ ही दृषद्वती (घाघरा) के किनारे बहुत दिन हुए नष्ट हो गई ! अब उनका मिलना असंभव है। मुसलमानों के अत्याचार से कहीं भी कुछ शेष नहीं है, केवल भारत की प्राचीन राजश्री का अश्रुप्रवाह ही कहीं कहीं गंगा,यमुना और सरयू का नाम धारण कर शेष रह गया है; तथापि हम यथासाध्य इन सातों पुरियों की आवश्यक बातों का क्रम से वर्णन करना आरंभ करते हैं। आशा है कि पाठकों को रुचिकर होगा |

चाहे कोई हठा दुराग्रही माने या न माने पर यह सिद्धांत की बात है कि भारतवर्ष में यदि परमधर्म्म मूर्तिपूजन का प्रचार