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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/६५

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अयोध्या

अतिरिक्त कविकुलचूड़ामणि वाल्मीकिजी को कुछ भी विषय अच्छा नहीं लगा; कालिदास, भवभूति, मुरारि, जगन्नाथ और जयदेव आदि भारत के बड़े बड़े महाकवियों ने जिसका वर्णन कर अपने को धन्य माना और जहाँ के एक रामनाम के प्रवाह ने संसार को पूत और प्लावित कर निष्पाप कर दिया, उस परम पूजनीया अयोध्या का नाम सबसे पहले किस प्रकार न हो ? होना ही चाहिए । सुतरां जब सब ने अयोध्या की कीर्ति का कीर्तन सर्वप्रथम किया है, तब हम भी उसी प्राचीन मर्यादा का अनुसरण कर, सबसे पहले, अयोध्या ही का वर्णन करते हैं।

अयोध्या की अलोचना के तीन दृश्य हैं। एक सबसे पुराना है जिसको महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में दिखलाया है दूसरा मुसल्मानी राज्य के प्रारंभ समय का है,जिसको फारसी की तवारीखों (इतिहासों) में उस समय के इतिहासलेखकों ने लिखा है। तीसरा वर्तमान समय का है,जो हमारे नेत्रों के सामने विद्यमान है और जो अँगरेजी राज्य की उत्तमता का फल है । अयोध्या का प्राचीन दृश्य इतना मनोहर है कि उसे हम किसी प्रकार चित्त से हटा नहीं सकते । जो लोग उसे हमारे चित्त से हटाने की चेष्टा करते हैं, उनका श्रम निष्फल है । उन्हें समझना चाहिए कि हम यदि उनकी माया में फँसकर अयोध्या के उस दृश्य को भूलें भी तो वाल्मीकि और तुलसीदास आदि महापुरुष हमें भूलने नहीं देते ।