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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/९९

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धृति और क्षमा

सच्चे खुदादोस्त हैं। इनसे अपने गुनाह माफ करवाने चाहिए। यह सोचकर ये उनके चरणों में जा गिरे और उनसे अपने अपराधों की क्षमा चाही। स्वामी हरिदासजी प्रसन्न हो गए और उन्होंने उपदेश दे इनका हरिभक्त बनाया. और एसा बनाया कि जिसकी भक्ति देखकर हिंदुओं का भी कहना पड़ा कि "हरिभक्त खानखाना धन्य है।" यदि स्वामीजी उस दिन क्षमा न करते तो आज हम लोगों को खानखाना के भगवद्भक्तिमय सरस पद्य देखने का न मिलते । इसलिये किसी ने बहुत अच्छा कहा है कि-

"मृदुना दारणं हन्ति मृदुना हन्त्यदारुणम् ।
नासाध्यं मृदुना किंचित् तस्मात् तीव्रतरं मृदु ।”

अर्थात् मृदुता से मनुष्य कठोर को काट सकता है और कोमल को भी काट सकता है। ऐसी कोई वस्तु नहीं जो मृदु से साध्य न हो। इसलिये मृदु काे सबसे तीव्र समझना चाहिए। मसल है कि ठंढा लोहा गरम को काट सकता है, गरम ठंढे को नहीं।