पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१५५

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हमारे देश में वृक्षों का नाश होने लगा,तभी से हमारी धरती- माता जीर्ण हो गई। वर्षा की न्यूनता और रोगों की वृद्धि हो गई। यदि पर भी हमारे देशहितपी भाई धरती का भला चाहते है तो वृक्ष प्रोर घास का नाश होना रोके। लोगों को उपदेश देना, अपनी जमीन पर के पेडो को न काटना-सदा की सन्या पढाते रहना-सरकार से भी इस विषय में प्रार्थना करते रहना इत्यादि हो उपाय है। पीपल का वृक्ष पोना होता है, घाइ धौरों से अधिक जलींचता है। इसीसे उसका काटा धर्जित है। जहां तक हो सके उसको तो काटने से अवश्य हो यचाइए ! परगद, यांवला इत्यादि दूधवाले वृक्षों (जिगर्म दूध निकलता है) से और भी अधिक सपकार है। याप जानते हैं, पानी की अपेक्षा दूध अधिक गुणकारी होता है, सो भी वृक्षों का दूध ! जिसका प्रत्यक्ष फल यह है कि परगद का दूध, गूलर के फल निर्बलों के लिए पड़ी भारी दवा है।मला बनसे सूर्यनारायण कितनी सहायता पाते है, तथा उनके काटने से फिसना धरती माता को दुख होता है, इसको हम थोडे से पत्र में कहां तक लिख सकते हैं हमारे रिखियों ने जेठ में घटपूजन एव अन्यान्य मासों में दूसरे वृक्षों का पूजन पाहा है, इसका ऐतु यह था कि पुरज की प्रपर किरण उनका दूध सुखा देती है यह घाटा उनकी जड में दूध डालके तथा फल और अष्टगंध की सुगध से पूरा करना चाहिये।

पर शोक है नये मतावलम्बियों की बुद्धि पर कि उन्होंने मुर्खता से ऐसी हिकमतों को जड वस्तु की उपासना समझा है। अरे भाई अपना मला चाहो तो मतवाले न बनो । प्रत्येक वृक्ष की रक्षा, वृद्धि और सनातन रीति से तल दुग्धापि यारा उनको सींचना स्वीकार करो।

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