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पृष्ठ:निर्मला.djvu/१७९

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पन्द्रहवाँ परिच्छेद

निर्मला को यद्यपि अपने ही घर के झञ्झटों से अवकाश न था; पर कृष्णा के विवाह का सन्देशा पाकर वह किसी तरह न रुक सकी। उसकी माता ने बहुत आग्रह करके बुलाया था। सबसे बड़ा आकर्षण यह था कि कृष्णा का विवाह उसी घर में हो रहा था, जहाँ निर्मला का विवाह पहले तय हुआ था। आश्चर्य यही था कि इस बार बिना कुछ दहेज लिए कैसे विवाह होने पर तैयार हो गए। निर्मला को कृष्णा के विषय में बड़ी चिन्ता रहती थी। समझती थी—मेरी ही तरह वह भी किसी के गले मढ़ दी जायगी। बहुत चाहती थी कि माता की कुछ सहायता करूँ, जिससे कृष्णा के लिए कोई योग्य वर मिले; लेकिन इधर वकील साहब के घर बैठ जाने और महाजन के नालिश कर देने से उसका हाथ भी तङ्ग था। ऐसी दशा में यह ख़बर पाकर उसे बड़ी शान्ति मिली। चलने की तैयारी कर दी,