सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:निर्मला.djvu/५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
 

चौथा परिच्छेद

कल्याणी के सामने अब एक विषम समस्या आ खड़ी हुई। पति के देहान्त के बाद उसे अपनी दुरावस्था का यह पहला और बहुत ही कड़वा अनुभव हुआ। दरिद्र विधवा के लिए इससे बड़ी और क्या विपत्ति हो सकती है कि जवान बेटी सिर पर सवार हो? लड़के नङ्गे पाँव पढ़ने जा सकते हैं, चौका-बर्तन भी अपने हाथ से किया जा सकता है, रूखा-सूखा खाकर निर्वाह किया जा सकता है, झोपड़े में दिन काटे जा सकते हैं; लेकिन युवती कन्या घर में नहीं बिठाई जा सकती। कल्याणी को भालचन्द्र पर ऐसा क्रोध आता था कि स्वयं जाकर उसके मुँह में कालिख लगाऊँ, सिर के बाल नोच लूँ। कहूँ, तू अपनी बात से फिर गया, तू अपने बाप का बेटा नहीं। पण्डित मोटेराम ने उनकी कपट-लीला का नग्न वृत्तान्त सुना दिया था।

वह इसी क्रोध में भरी बैठी थी कि कृष्णा खेलती हुई आई, और बोली—कै दिन में बारात आएगी; अम्माँ! पण्डित जी तो आ गए।