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पृष्ठ:निर्मला.djvu/६९

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छठा परिच्छेद

उस दिन अपने प्रगाढ़ प्रणय का सबल प्रमाण देने के बाद मुन्शी तोताराम को आशा हुई थी कि निर्मला के मर्मस्थल पर मेरा सिक्का जम जायगा; लेकिन उनकी यह आशा लेशमात्र भी पूरी न हुई; बल्कि पहले तो वह कभी-कभी उनसे हँस कर बोला भी करती थी, अब बच्चों ही के लालन-पालन में व्यस्त रहने लगी। जब घर में जाते, बच्चों को उसके पास बैठे पाते। कभी देखते कि उन्हें खिला रही है, कभी कपड़े पहना रही है, कभी कोई खेल खेल रही है, और कभी कोई कहानी कह रही है। निर्मला का तृषित हृदय प्रणय की ओर से निराश होकर इस अवलम्ब ही को ग़नीमत समझने लगा। बच्चों के साथ हँसने-बोलने में उसकी मातृ-कल्पना तृप्त होती थी। पति के साथ हँसने-बोलने में उसे जो सङ्कोच, जो अरुचि, तथा जो अनिच्छा होती थी, यहाँ तक कि वह उठ कर भाग जाना चाहती; उसके बदले यहाँ बालकों के सच्चे, सरल स्नेह से चित्त प्रसन्न हो जाता था। पहले मन्साराम उसके