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आघात सहते देखकर बैठा रहूँगा? अपनी मान-रक्षा के लिए न सही, उनकी आत्म-रक्षा के लिए इन प्राणों का बलिदान करना पड़ेगा। इसके सिवाय उद्धार का कोई उपाय नहीं। आह, दिल में कैसे-कैसे अरमान थे। वे सब खाक में मिला देने होंगे। एक सती पर संदेह किया जा रहा है, मेरे कारण। मुझे अपनी प्राणों से उनकी रक्षा करनी होगी, यही मेरा कर्तव्य है। इसी में सच्ची वीरता है। माता, मैं अपने रक्त से इस कालिमा को धो दूँगा। इसी में मेरा और तुम्हारा दोनों का कल्याण है।

वह दिन भर इन्हीं विचारों में डूबा रहा। शाम को उसके दोनों भाई आकर घर चलने के लिए आग्रह करने लगे।

सियाराम-चलते क्यों नहीं? मेरे भैयाजी, चले चलो न।

मंसाराम–मुझे फुरसत नहीं है कि तुम्हारे कहने से चला चलूँ।

जियाराम-आखिर कल तो इतवार है ही।

मंसाराम—इतवार को भी काम है।

जियाराम–अच्छा, कल आआगे न?

मंसाराम-नहीं, कल मुझे एक मैच में जाना है।

सियाराम-अम्माँजी मूंग के लड्डू बना रही हैं। न चलोगे तो एक भी न पाआगे। हम तुम मिल के खा जाएंगे, जिया इन्हें न देंगे।

जियाराम-भैया, अगर तुम कल न गए तो शायद अम्माँजी यहीं चली आएँ।

मंसाराम–सच। नहीं ऐसा क्यों करेंगी। यहाँ आई, तो बड़ी परेशानी होगी। तुम कह देना, वह कहीं मैच देखने गए हैं।

जियाराम–मैं झूठ क्यों बोलने लगा। मैं कह दूँगा, वह मुँह फुलाए बैठे थे। देख ले उन्हें साथ लाता हूँ कि नहीं।

सियाराम-हम कह देंगे कि आज पढ़ने नहीं गए। पड़े-पड़े सोते रहे।

मंसाराम ने इन दूतों से कल आने का वादा करके गला छुड़ाया। जब दोनों चले गए तो फिर चिंता में डूबा। रात भर उसे करवटें बदलते गुजरी। छुट्टी का दिन भी बैठे-बैठे कट गया, उसे दिन भर शंका होती रहती कि कहीं अम्माँजी सचमुच न चली आएँ। किसी गाड़ी की खड़खड़ाहट सुनता तो उसका कलेजा धक्धक् करने लगता। कहीं आ तो नहीं गईं?

छात्रालय में एक छोटा सा औषधालय था। एक डॉक्टर साहब संध्या समय एक घंटे के लिए आ जाया करते थे। अगर कोई लड़का बीमार होता तो उसे दवा देते। आज वह आए तो मंसाराम कुछ सोचता हुआ उनके पास जाकर खड़ा हो गया। वह मंसाराम को अच्छी तरह जानते थे। उसे देखकर आश्चर्य से बोले—यह तुम्हारी क्या हालत है जी? तुम तो मानो गले जा रहे हो। कहीं बाजार का चस्का तो नहीं पड़ गया? आखिर तुम्हें हुआ क्या? जरा यहाँ तो आओ।

मंसाराम ने मुसकराकर कहा—मुझे जिंदगी का रोग है। आपके पास इसकी भी तो कोई दवा है? डॉक्टर—मैं तुम्हारी परीक्षा करना चाहता हूँ। तुम्हारी सूरत ही बदल गई है, पहचाने भी नहीं जाते।

यह कहकर, उन्होंने मंसाराम का हाथ पकड़ लिया और छाती, पीठ, आँखें, जीभ सब बारी-बारी से देखीं। तब चिंतित होकर बोले-वकील साहब से मैं आज ही मिलूँगा। तुम्हें थाइसिस हो रहा है। सारे लक्षण उसी के हैं।

मंसाराम ने बड़ी उत्सुकता से पूछा-कितने दिनों में काम तमाम हो जाएगा, डॉक्टर साहब?

डॉक्टर-कैसी बात करते हो जी। मैं वकील साहब से मिलकर तुम्हें किसी पहाड़ी जगह भेजने की सलाह दूंगा। ईश्वर ने चाहा तो बहुत जल्द अच्छे हो जाओगे। बीमारी अभी पहले स्टेज में है।