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पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१३२

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पत्थर-युग के दो बुत
 

१२८ पत्थर-युग के दो वुत $$ ?" $ 11 "रेवा, सच-सच बता दो। क्या तुम दत्त को प्यार करती हो "नही करती । मैं तुम्हे प्यार करती है । औरत दो मदों को प्यार नही कर सकती, नहीं कर सकती । तुम अव यदि मेरे प्यार का प्रतिदान न करोगे, मेरी रक्षा न करोगे, तो मैं कही की न रहगी "लेकिन रेखा, मै भी तो तुम्हे प्राणो मे अधिक प्यार करता है । तुम कहो-मै तुम्हारे लिए क्या करू ?" "मैं दत्त से कह दूगी माफ-माफ कि मै बेवफा हू । तुम्हे प्यार नहीं करती। तुम मुझे त्याग दो। वे मुझे त्याग देगे, तो मैं तुमसे व्याह कर लूगी, जैसे माया ने वर्मा से कर लिया है।" रेखा के इस प्रस्ताव से मै झमेले में पड़ गया। में ममझ ही न पाया कि क्या जवाव दू । पहले भी एक-दो बार उसने यही बात नकेन से कही थी, पर आज तो उसने साफ-साफ कह दी। मैंने कहा, "रेगा, मुझे सोचने का समय दो। ये वडी गम्भीर बाते हैं। खूब सोच-विचारकर हमे अगला कदम उठाना पडेगा।" तो इस पर रेखा को गुस्सा या गया। गुस्से में पहले कभी मैने उसे देख न था। बडी सुन्दर लग रही थी वह । गुस्से में उसके गाल लाल हो गए थे। फूले हुए लाल होठ फडक रहे थे, नयनो मे वडे-बडे आसुप्रो के मोती सज रहे थे। उसने गुस्सा होकर कहा "अव क्या सोच-विचार करोगे? यहा तक आकर क्या फिर पीछे हम लौट सकते है ? ऐसा ही था तो पहले ही मोच-विचार करते । अव तो मै हलाहल पी चुकी, अव तो मरना ही होगा। सोच-विचार से क्या 1 होगा अब ?" मैंने उसे बहुत ढाढस दिया, समझाया-बुझाया। पर वह तो निरन्तर रोती रही, रोती ही रही। फिर उसने न जाने कहा से एक हिम्मत मन मे सचित करके कहा, "नही-नही, आज ही इसका फैसला कर दो। वोलो, तुम मुझसे ब्याह करोगे? मैं दत्त से सव-कुछ खोलकर कह द् भला मैं एकाएक उसका प्रस्ताव कैसे मान सकता हू | कितनी बदनामी होगी मेरी माया के मुकदमे से और उसके चले जाने से मैं पहले ही काफी ?" प-