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पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१५९

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पत्थर-युग के दो बुत
१५३
 

पत्थर-युग के दो बुत १५३ 731 मेरा सिर घूम गया है । आसमान नीचे आ गया है। जमीन सिर पर चक्कर लगा रही है। "राय के घर ? क्यो ? क्यो, क्या बात है ? क्यो गई है वह वहा इस वक्त "जी, कह नहीं सकती।" "क्यो नही कह सकती ?" "जी, मैं नहीं जानती।" "मेरा तार आया था "जी।" "रेखा ने पढ़ा था ?" "जी नही।" 711 "क्यो?" यहा नही थी।" "तव कहा थी ?" ?" t "राय के घर।" "राय के घर ? कव गई थी वहा "दोपहर खाना खाकर ।" "और अभी तक नही लौटी ? दस बज रहे हैं "जी।" "तार कहा है ?" " "तार तो किसी ने पढा ही नहीं है । जैसा का तैसा वन्द है।" "तुमने तार वहा भेजा नही?" "जी नही।" "क्यो नही " "हुक्म नही है।" "कैसा हुक्म नही है " "यह कि वहा राय के घर पर कोई नौकर-चाकर न पाए।