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पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/१७३

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पत्थर-युग के दो बुत
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पत्थर-युग के दो बुत १६७ ( - ? उठे हैं । उन्होने मेरा हाथ पकड लिया है। उनकी उगलिया काप रही हैं। पर उनका यह सुखद स्पर्श मुझे अच्छा लग रहा है। पर दत्त चुप हैं, कुछ भी बोलते नही है। पर वे पिक्चर भी ध्यान से नहीं देख रहे है। कभी- कभी उनकी उगलियो का कपन बढ़ जाता है। पर उनकी नजर पिक्चर पर ही है। अभी एक ही रील खत्म हुई है कि वे उठ खडे हुए। उन्होंने कहा, "रेखा, एक बहुत जरूरी काम याद आ गया, मैं अभी आता हू । तुम वैठो।" और वे विना मेरी ओर देखे लपकते हुए चले गए। मैंन रोकना चाहा पर वे नही रुके । “अभी आता हू, अभी आता हू," कहते हुए चने गए। प्रद्युम्न का मन तो पिक्चर मे लग रहा है। पर मेरा मन दन में है। कहा चले गए वे ? ऐसी कौन-सी बात याद ग्रा गई वो प्राय की बात है यह। पिक्चर खत्म हो रही है, पर दत्त का पता नहीं है। मेरी वेचैनी बढ रही है। मन मे यह कैसी धवराहट उठ रही। का वात है कहा चले गए वे? पिक्चर खत्म हो गई। दत्त नहीं पाए। मोफर प्रतीता कर रहा था। मैंने पूछा, “साहव पाए उमने शैतानी से पूछा, "कौन साहब दत्त नाव पा राम गुस्से से मेरी पाखे जल उठी। ये कमीने नौकर भी मेरा उपहान करत है । पर मैंने शान्त होकर कहा, “दत्त साहब को पुती ह । दरता नहीं पर शोफर ने आहिस्ता ते जवाब दिया, दत्त नाम रन दे गए है कि मै टैक्सी लेकर आपको घर ले जाज। कार वे ले है !" "लेकिन कहा गए हैं दत्त इस तरह अन्मान् बहाना बनात चलो गल्दी। एक टैक्ती ले प्रायो।" शोफर टेक्नी लाता पार न टैक्नी मे वैठ जाती है। घर भी वे नहीं पहुंचे हैं। मेरा मन नप ने परीवार, पोर नग कलेजा नुह को ग्राने लगा ह । न जाने क्या होन बाना । नारनवर एक-एक क्षण मुने पहाड लग रहा है। दन वज रहे है। दन नहीं पाए। माना नितीन ! ? अन्धा है " वे हा 2