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पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/२६

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पत्थर-युग के दो बुत
 

२६ पत्थर-युग के दो बुत ? वदन, उछलता योवन, प्यासी पाखे, और दान को उतावले होठ। चम्पे की कली के समान कमनीय उगलिया, एडी तक लटकती पुघराली लटे, चादी- सा उज्ज्वल माथा। अनार की पक्ति के समान दात और चादनी-सा हास्य । वाह, इसे कहते हैं औरत, जिसे देखते ही आखो मे नशा छा जाता है । अभी तक मैंने उसे छुपा नही, पर फूलो के ढेर के समान वह कोमल है। जब वह बोलती है, रुनक झुनुक घुघरू बज उठते है। बात-बात मे उसका चेहरा रगीन हो जाता है। आखें चमकने लगती है। प्यार का एक झरना है जो उसकी हर अदा से झर रहा है, उसे देखे बिना कैसे रहा जा सकता है भला? और उसे देखकर फिर और किसे देखने का मन हो सकता है दत्त मेरा दोस्त है, पुराना दोस्त । भला आदमी है, पर इससे क्या क्या इसी मे वह रेसा-जैसी औरत का पति होने योग्य माना जा सकता है रेखा से उसका व्याह हुया है। दूसरे शब्दो मे, रेखा को उसके मा-बाप ने दत्त की पतलून की जेब मे डाल दिया है। वह एक रूमाल की भाति उसका इस्तेमाल करता है, जब-तब मुह का पसीना, धूल-गर्द पोछ लेता है। उसे पाकर रेखा को क्या मिल सकता है भला । दत्त साड की भाति तन्दुरुस्त है, प्रतिष्ठित और विचारशील है। शायद रेखा को प्यार भी करता है। सबके ऊपर वह उसका विवाहित पति है । पर इसी से क्या वह रेखा का सव-कुछ हो गया? अच्छा मान लिया कि वह रेखा को प्यार करता है, पर क्या यह भी माना जा सकता है कि वह रेखा के प्यार का ग्रानन्द भी लेने की योग्यता रखता है ? मैने ऐसे कुछ पति देखे है जो अपनी पत्नियो को योडा -बहुत प्यार करते है, पर ग्राज तक ऐमा एक भी पति नहीं देखा जो अपनी पत्नी के प्यार का प्रा प्रानन्द ले सकता हो। इन म्ट पतियो को, जो अपनी पत्नियो को अपनी ज़िन्दा दौलत समझते है और हिफाजत ने घरो मे दबोच रखते है, भता पौरत का प्यार कैसे मित नाता है ? उन्हे तो औरत की खीझ और विरक्ति ही पले पडेगी। सभी जगह मैने यही देखा है। रेवा के प्यार का प्रादि-अन्त नहीं है। पर वह उसे सजोए किसी को