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पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/४१

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पत्थर-युग के दो बुत
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पत्थर-युग के दो वुत ३६ ? मन मे पत्नी को सव कोई नही कर सकते । वेशक मैं कुछ लापरवाह अवश्य हू । पर हम पति-पत्नी है। दिखावे की हम लोगो को क्या जरूरत है क्या हम अब अपने प्यार को भी नाप-तोलकर देते-लेते रहे ? मानता हू -मैं ड्रिंक करता है । पर यह मेरी पुरानी आदत है । वह इसे पसन्द नहीं करती, इसीसे मैं घर मे न पीकर क्लब मे पीता था। वहा दोस्त लोगो मे तफरीह करते देर हो जाती थी । पर यह कोई इतना वडा कुसूर नही कि औरत मुह फेरकर हर वात का जवाव ठण्डी नही' मे दे। इस 'नही' के वाद तो फिर कुछ भी नही रह जाता । मैं कमाता किसके लिए हू भला ? रेखा ही के लिए न ? मैं तो तन-मन से उसपर न्योछावर हूँ । मैंने अाज तक दूसरी किसी औरत की ओर अाख उठाकर भी तो नहीं देखा । मैं यह सव गन्दी बातें पसन्द नही करता। फिर कौन औरत है जो रेखा के चरण नल की बरावरी भी कर सकती है । मुझे रेखा पर गर्व है। मेरे डिंक पर वह इतना खीझ जाएगी, यह मैंने नहीं सोचा था। असल वात यह है कि मैं प्रतिवन्ध सह नहीं सकता। उसने तो मेरे साथ डिस्टेटर- शिप शुरू कर दी। मैं ड्रिंक करू ही नही? मित्रो के साप प्रानन्द-वार्ता न करू पीना न करू ? सवको छोड दू? अकेला उसी की गुलामी करू यह तो प्यार से बाहर की बात है। गुस्सा आ गया मुझे। मेरे अात्मसम्मान पर चोट लगी। और मैंने ज़रा-सी सज़ा दे दी । उसने घर में मेरा वय-डे मनाया, मैंने वाहर | बहरलाल मै अपने दोस्तो को, उनके गांव को कने नजरअन्दाज़ कर सकता हूँ | वे डिक को फर्माइश करे-मेरे वय-डे पर, तो मै कैसे इन्कार कर दू । माना शराव वुरी चीज़ है, पर वह ऊची मोसा- इटी की एक अनिवार्य वस्तु हो गई है--विदेश मे मेने यह देवा ह , पार समझता ह वि इसमे तफरीह भी होती है, वहुत-से काम नी निरनत है। वडे लोगो की कृपा और मित्रता प्राप्त होती है। दिन के नमय ही नब टाटे- वडे का भेद मिट जाता है, यार कभी न नी बडी-वटी उलगने नुतन जाती है। डिंक करते-करते एक क्षण आता है जब हृदय हलना मार मच्छ ? खाना- ? .