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पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/४८

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पत्थर-युग के दो बुत
 

४६ पत्थर-युग के दो बुत , आचल मे पडा-पडा वासी हो रहा था और मुझे जो मिल रहा था वह प्यार न था-प्यार की तलछट थी, कडवी और अप्रिय। अपने प्यार का मूल्य तो मैंने व्याह से पहले ही जान लिया था। अव मैंने उसे यत्न से अपने कलेजे मे छिपा लिया। राय को यदि उसकी भूख नहीं है तो क्या जरूरी है कि ज़बरदस्ती उन्हे ही दिया जाए? परन्तु अब मेरी भूख मुझे वेचैन कर रही थी-वह बहुत भडक उठी थी । मुझे ढेर-सा प्यार चाहिए था। राय की तलछट मेरे काम की न थी। मुझे उससे नफरत हो गई। मुझे चाहिए गर्मागर्म प्यार-एकदम ताजा, एकदम अछूता और वह मुझे मिल गया। इसे मैं अपना सांभाग्य नहीं कहूगी। उसका सौभाग्य न कहूगी । मुझ जैसी सत्पात्र को वह प्यार मिला। वह निहाल हो गया । और मैंने बहुत दिन बाद तृप्त होकर प्रेम का अमर रसपान किया।