सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:पत्थर युग के दो बुत.djvu/७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
पत्थर-युग के दो बुत
६९
 

पत्थर-युग के दो बुत उम्र तक अपनी शक्ति कायम रख सकता है, पर स्त्री बडी उम्र तक अपने शरीर का यौवन और रूप का जादू कायम नहीं रख सकती। इसमे स्त्री यदि प्यार के मामले में पुरुष से स्पर्धा करे तो निश्चय ही उसे घाटे में रहना होगा। उसमे सामर्थ्य है, उसके पास साधन है, वह नित-नये यौवन खरीदंगा और उनका उपभोग करेगा, परन्तु यौवन बीत जाने पर स्त्रिया असहाय पीर निरीह रह जाएगी, उनका आश्रय छिन जाएगा, उनका घर लुट जाएगा।" 'यही भय दिखाकर मर्द चाहते हैं कि स्त्रिया उनके व्यभिचार को मन करती रहे, और उनकी एकनिष्ठ बनी रहे। पर तुम समाज के बदतत हुन सगठन को नहीं देख रहे । स्त्रिया अब जीवन-मग्राम में भी पुम्पो के नाय बरावरी की स्पर्धा करती है। स्त्रिया अव अपने प्यार की दुकान गोनकर ही बैठी नहीं रहेगी-~-वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के मार रही। रहो आयु और यौवन की बात, तो आयु के साथ ही साथ प्रेम का चम्प भी वदलता रहता है। स्त्रिया पत्नी ही नहीं है, माताए भी है, और तुन्द जानना चाहिए कि पत्नी के प्यार की अपेक्षा माता का प्यार बहुत वडाह!" "माया, मैं अनुभव करता हूं कि मैने तुम्हे क्षति पहुचाई है। तुम रहा, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता ह "तुम मुझपर बेवफाई का इलज़ाम लगाकर मुझे तलाम दे दो। नके उन न होगा।" "न, न, ऐसा में नहीं कर सकता। यदि यही करना ह तो तुन्ही नने लम्पट करार देकर तलाक का दावा कर दो, नुके उन न होगा।" “ऐसा म नही कर सकूगी।" "तव असद्व्यवहार का दावा करो।" "ग्रसद्व्यवहार तो तुमने मेरे साप कभी बिना नहीं।" 'तव, जो कुछ भी तुम ठीक नम नो । न तुम्हारी मिनी नान बाधक न होऊगा। पर यह तुम याद रखना~म तुम्ह बनी नहीं भूलनरतः। म और अधिक कुछ न कहता । वहा ते नर वाहवा नार! मैंने माते-याते देसा, माया रो रही पी। ( 1