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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२१९

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-] सुधाकर-चन्द्रिका। १३८ दोहा। - कार्य। = बाज। मकु =मैंने साक्षी॥ दुइ सो छपार ना छपहिँ एक हतिया एक पापु । अंत-हु करहिं बिनास पुनि सइ साखौ देइ अापु ॥८८॥ धादू =धाई =धात्री। गिवान =ज्ञान। बिसरामौ -विश्रामौ विश्राम देने-वाला। सामी= स्वामी=मालिक। खंडित = खण्डित =रहित दूर -विभत = अलग। राग राग = अापस को डाह । दोस = दोष। आग = आगे। तिपाइँ = स्त्रियाँ । काज = ताऊ =ताह = तिस को। मजूर = मयूर। काऊ = क्वापि = कभौं। कंत= कान्त = पति। श्राम= आज्ञा । भरोस= भराशा = पूर्णाशा = विश्वास । बाँहा कहा = क्या जाने । तर = त्वरी= घोडा। हरि = वानर = बन्दर । हतिया= हत्या = ब्रह्महत्यादि महापाप । पापु पाप साधारण । अंत- = अन्त में। बिनास = विनाश। सद् =से । माखौ धाई शुक को ले कर मारने गई, (राह में ) समुझ कर ज्ञान हुआ और बुद्धि (मति) हुई ॥ (कि), शुक जो है, सो राजा को विश्राम (धाराम) देने-वाला है, (दूस लिये) जिसे स्वामी चाहता है, वह मारा नहीं जाता ॥ यह शुक पण्डित है, और राग (इष) से दूर है, अर्थात् निष्पक्षपात सत्य कहने-वाला है, (सो) जिस को आगे न सूझे तिमी का दोष जानना चाहिए ॥ जो स्त्रियों के कार्य को नहीं जानता (कि क्षण क्षण में बदला करता है), उसे धोखा (खाना ) पडता है, और पीछे से पछताना पडता है ॥ (सो) नागमती जो है, तिस को बुद्धि नागिनि सी है, (जिसे भले बुरे का कुछ पहचान नहीं रहता। काट कर सब का प्राण लेती है), ( उसे जो यह डर है, कि यह एक मेरे लिये मयूर है, मो) कभी एक मयूर नहीं होता । जो अपने पति-हौ (जो दोनों लोक के लिये स्त्री को प्रधान पूज्य है) को श्राज्ञा में नहीं रहती, ऐसौ नारी के बाहु का कौन भरोसा है, अर्थात् कुछ भरोसा नहीं ॥ (मो) क्या जानें रात्रि में (राजा के श्राने पर) इस का (शुक का) खोज हो, और (ऐसा न हो, कि) घोडे का रोग बन्दर के माथे जाय। (कहावत प्रसिद्ध है, कि अश्व-शाला में बन्दर के रहने से घोडौँ को बीमारी नहीं होती; यदि बीमारी पाई भौ, तो वह बन्दर के शिर जाती है, अर्थात् घोडे की बला बन्दर ले लेता है, और उस रोग (बला) से बन्दर-हौ मर जाता है, घोडे अच्छे रहते हैं। इसी प्रकार