सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१४४ पदुमावति । ८ । नागमति-सुया-संबाद-खंड । [६१ चउपाई। चाँद जइस धनि उँजिअरि अही। भा पिउ रोस गहन अस गही। परम सोहाग निबाहि न पारी। भा दोहाग सेवा जब हारी ॥ प्रतनिक दोस बिरचि पिउ रूठा। जो पिउ आपन कहइ सौ झूठा ॥ गरब न भूलइ कोई। जेहि डर बहुत पित्रारी सोई॥ रानी आइ धाइ के पासा। सुश्रा भुषा सेवरि कइ आसा ॥ परा पिरिति कंचन मँह सौसा। बिथरि न मिलइ सावँ पइ दौसा ॥ कहाँ सोनार पास जेहि जाउँ। देव साहाग करइ एक ठाऊँ । अइसई दोहा। - मइँ पिउ पिरिति भरोसइ गरब कीन्ह जिअ माँह । तेहि रिस हउँ परहेली रूसेउ नागरि नाह ॥ ११॥ चाँद = चन्द्र। जदूम = जैसौ। धनि = धन्या = नागमती। उँजिपरि = उज्वलित । अहौ = थी। पिउ = प्रिय पति = रत्न-सेन। रोस = रोष = क्रोध। गहन = ग्रहण गही= पकडी गई। परम =' अत्यन्त । मोहाग = सौभाग्य = पति-सुख। निबाहि = निर्वाह । पारौ = सकी। दोहाग = दौर्भाग्य = दुःख । प्रतनिक = इतना = एतावान् । दोस = दोष । बिरचि = रच कर के = कर के। रूठा = रुष्ट हुा । गरब = गर्व । पित्रारी = प्यारी प्रिया । भुश्रा = भूत्रा = सेमर के फल को रूई । सेवरि= सेमर = शाल्मलि। पिरिति प्रौति। कंचन = कञ्चन = सुवर्ण। मौसा = मौसक। बिथरि = विस्थल हो कर = भ्रष्ट हो कर = विथुर कर = फट कर = अलग हो कर = चारो ओर से विदीर्ण हो कर। साव = श्याम = काला । दौसा = दौखा = देखा जाता है। मानार = स्वर्णकार । माहाग सौभाग्य वा मोहागा जो मोने को शीघ्र गला देता और विशेष कान्तिमान कर देता है। ठाऊँ = स्थान । रिस = रोस = क्रोध । परहेलो = परहेलित हुई = अवहेलित हुई = अनादृत हुई = श्रादर से रहित हुई । नागरि = हे नागरी= चतुरी धाई। नाह = नाथ = खामौ = पति । यहाँ परहेला = अवहेला = अनादर ॥ भामिनी-विलास के प्रास्ताविक-विलास में लिखा है कि “समुपागतवति दैवादवहेला कुटज मधुकरे मागाः । मकरन्दतुन्दिलानामरविन्दानामयं महामान्यः ॥” गौतिः ॥