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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/२७०

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१८० पदुमावति । १० । नखसिख-खंड । [ १०७ श्रोठ। दमन रस । कौर कर = हिरुक् । बासा = वास = सु-गन्ध, वा वास = वसावे वास दे। अधर = = दशन = दाँत। पद = उपरि = ऊपर। सोभा = शोभित है। दारिउ = दाडिम अनार। कराहौँ = करते हैं वा कराहते हैं, अर्थात् कहरते हैं ॥ अमौं-रस = अमृत- शुक । असरम=श्राश्रम = स्थान । तौर = तट ॥ खड्ग को धार जैसी पतली होती है, उसी तरह पतली नाक होने से नाक को उपमा खड्ग से दी जाती है। इसी प्रकार शुक के ठोर ऐसौ नाखौलो होने से नासिका को उपमा एक से भी दी जाती है ॥ (होरा-मणि कहता है, कि) नासिका-खड्ग किस के योग्य है जिसे देऊँ, अर्थात् जिम के सदृश कहूँ, (क्योंकि) वह खड्ग से भी पतली मुख से संयोग किये है, अर्थात् मुख से मिलौ है (मो खड्ग तो हाथ से मिला रहता है, और यह खड्ग से भी पतलौ मुख से मिली हुई है, इस लिये खड्ग इस को समता को नहीं प्राप्त कर सकता, यह कवि का अभिप्राय है) ॥ नासिका को देख कर शुक लज्जित हो गया, (इसौ से वन-वृक्षों के कोटर में छिप कर रहने लगा)। (नासिका को शोभा देखने के लिये) शुक्र भी आ कर बेसर-स्वरूप हो कर उदय हुआ। कवि को उत्प्रेक्षा है, कि पद्मावती के नाक में जो बेसर को बडी मुक्ता पडी है, वह मुक्ता नहीं है, जानों नासिका को शोभा देखने के लिये शुक्र मुक्ता का रूप हो कर उदय हुआ है) ॥ (मैं ) होरा-मणि शुक जो हूँ, मो भौ (नासिका को समता-योग्य न होने से) लज्जा से पौला हो गया हूँ, (मो) हे राजा (रत्न-सेन), (अब) दूसरे ( अउरु) भाव का क्या वर्णन करूँ, अर्थात् जिस को ममता मैं न कर सका, और इस लज्जा से पौला पड गया तो मैं उस को प्रशंसा करने में असमर्थ हूँ॥ सो (मैं ) शुक तो ( उस नासिका की स्तुति करने-वाला) पौरिया (उस) नाक से कठोर हूँ, (मो कठोर को समता अयोग्य है, क्योंकि) वह (नासिका) कोमल और तिल-रूपी पुष्य से (और भौ) सँवारी है, अर्थात् नासिकाग्र पर जो काला तिल तिल-पुष्प सदृश है, उस से वह कोमल नासिका और भी शोभित है, इस लिये उस को बराबरी कठोर शुक कैसे कर सकता है ॥ सब पुष्य और सु-गन्ध (द्रव्य अंतर फुलेल इत्यादि) यही आशा करते हैं, कि क्या जाने (हम लोगों को ऐसौ भाग्य है, कि पद्मावती अपनी नामिका में हम लोगों को) लगा कर हम लोगों को वाम ले वा हम को ले कर और हिरिका कर हम को भी ( उस नाक-स्थान में ) वास (निवास) दे॥ श्रोठ और दाँतों के ऊपर नामिका ( ऐसौ ) मोहती है, (जानों) अनार को देख कर शुक का मन लुभा गया है, (लाल श्रोट 11