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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/३९५

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१४३] सुधाकर-चन्द्रिका। २८८ चउपाई। गज-पति कहा सौस पर माँगा। प्रतनी बोलि न होइहि खाँगा। ए सब देउँ पानि नउ-गढे। फूल सोई जो महेसहि चढे ॥ पइ गोसाइँ सउँ एक बिनाती। मारग कठिन जाब केहि भाँती॥ सात समुदर असूझ अपारा। मारहिँ मगर मच्छ घरिपारा॥ उठइ लहरि नहिँ जाइ सँभारी। भागहिँ कोइ निबहइ बइपारी तुम्ह सुखिया अपनइ घर राजा। प्रत जोखौउ सहहु केहि काजा ॥ सिंघल-दीप जाइ सो कोई। हाथ लिए आपन जिउ होई ॥ दोहा। खार खौर दधि जल-उदधि को चढि नाँघइ समुद ए (सात-उ) सुर किलकिला अकूत। हइ का कर अस बूत॥ १४३ ॥ गज-पति समुद्र-तट का अधिपति = कलिङ्ग का राजा। सौम = शौर्ष = शिर। माँगा माँगा हुआ = याचना। प्रतनौ = इयत् । बोलि = बोलो = वचन । होइहि = होगी। खाँगा = खच्च = खाली। श्रानि= श्रानौय =ले श्रा कर = श्रान कर। नउ-गढे = नव-गढे नये गढे हुए। महेसहि = महेश को। पद = श्रपि = परन्तु । गोसाइँ = गो-स्वामी = गो (इन्द्रियाँ) के खामौ = इन्द्रियों को अपने प्राधीन रखने-वाला। सउँ= साँ = ले। बिनाती = विनति = विज्ञप्तिका = विनय। मारग = मार्ग=राह। जाब जाइयेगा = जादू (याति) का भविष्यत्काल । भाँतौ =भती =रोति, जो काठिन्य को भग्न करे = प्रकार । सात= सप्त। समुदर = समुद्र। असूझ = अमूह्य = जो जहा योग्य नहीं = जो न देख पडे वा असूझ= अशुद्ध। अपारा जिम का पार न हो। मगर = मकर = एक विशिष्ट जल-जन्तु। मच्छ = मत्स्य = रोहू, पहिने, तिमिङ्गिलादि । घरिवारा = ग्राह = घरियार । भागहिँ = भाग्येभ्यः = भाग्यों से । निबहदू = निर्वहति = निबहता है। बदूपारी= व्यापारी व्यापार करने-वाला = वणिक् । सुखिश्रा = सुखौ =सुख-चाहने-वाले। अपनदू = प्रत= इयत् = इतना। जोखीउ जोखिम नुकसान = हानि ! मह = सहदू (सहते ) 37 अपार= अपने ।