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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४९६

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पदुमावति । १८ । वियोग-खंड । [१७७ - जस = यथा 1 -- जब लगि = यावत् = जब तक । अवधि = मितौ = वसन्त-ऋतु का समय । सो = सः

वह। आई = आवे = ( श्रा-उपसर्ग पूर्वक या प्रापणे से बना)। जुग = युग । बर

वर = बडा। बिरहिनि= विरहिणी। कह को। जाई = जाता है जायते । नौंद = निद्रा। भूख = बुभुक्षा = खाने की इच्छा। अह-निसि = अहर्निश = दिन रात । गद् = गई = अगात् । दोऊ = दोनों = द्वावपि । हिअ = हृदये = हृदय में। मारि=मारयित्वा = मार कर। जैसे कलपद् = कल्पति = काटता है (कृपु छेदने )। कोई = कोऽपि। रो = लोम-रोत्रा । जनु = जाने =जानौं। लागहिँ = लगद (लगति) का बहु-वचन, लगते हैं। चाँटे = चौंटे = चाटुक । सूत = सूत्र = एक परिमाण (दो सूत का एक पैन और चार पैन का एक इंच)। बेधहिं= वेध (विध्यते ) का बहु-वचन । काँटे = कण्टक । दगधि = दग्ध्वा दग्ध हो कर = भस्म हो कर। कराह = कटाह = कराहा। घौजः = छत = घो। बेगि = वेगेन = जल्दी। श्राउ = त्राता है (आयाति)। मलदू-गिरि= मलय-गिरि=मलयाचल । पोऊ = प्रिय = पति । कवन = को नु = कौन देवा = देव = देवता। जादू = जा कर (या प्रापणे से बना है)। परासउँ -परम (स्पृशानि) = छूऊँ । लादू = लगा कर। गरासउँ = ग्रसउँ ( ग्रसानि) = ग्रा = निगल जाय । गुपुत= गुप्त छिपा। साँसहि = श्वासे = साँस मैं। परगटे = प्रकट हुए परगट ( प्रकटयति) का प्रथम-पुरुष में लिट् का एक-वचन । सुभर = शुभ्र = अच्छा । चहहिं चहद (चदते वा इच्छति) का बहु-वचन। पुनि = पुनः =फिर । घटे = घटना = घटनम् (घट चेष्टायां से बना )। भप्र=भए। संजोग = संयोग । एतादृश मरना = मरण । भोगौ=भोग करने-व ने-वाला। गए =जाने पर । भोग = सुख-विलास । करना जोबन =जवानी = यौवन। चंचल चञ्चल । ढीठ = पृष्ठ = ढीठा । हदू = अस्ति है। कर = करता है (करोति)। निकाजदू = निः कार्य का= बेकाम का। काज = कार्य। धनि न = धन्य । कुलवंति = कुलवतो कुल-वधू । धरदु = धरती है (धरति)। कद = कृत्वा=कर। लाजलज्जा। जब तक वह (मन-)चाही मिती (वसन्त-ऋतु) आवे, (तब तक) विरहिणी ( पद्मावती) को दिन बडे युग के ऐसा जाता है (बीतता है) ॥ दिन रात नौंद और भूख दोनों (चलो) गई। (ऐसा जान पड़ता है, कि) कोई हृदय में मार कर काट रहा हो ॥ जानों रोएँ रोएँ में चौंटे लगे हैं, और सूत सूत पर काँटे चुभते हाँ । श्रम ऐसा । करण ॥ 1