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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५३५

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१९६-१९७] सुधाकर-चन्द्रिका । ४२८ ठहरा है। मैं गुण से रहित हूँ, इसौ से (श्राप को) सेवा न को; हे देव, श्राप निर्गुण को गुण देने-वाले हो ॥ (मेरे) संयोग (योग्य ) वर से मुझे मिलाश्री; मैं कलम मान जाती है। जिस दिन मेरी इच्छा पूरी होगी उसी दिन शीघ्र सा कर (कलम ) चढाऊँगी। प्रसिद्ध रौति है कि स्त्रियाँ दूध से वा दूध-भाग से भरे कलम की मनौती करती हैं कि हे महादेव यदि मेरा मनोरथ पूरा होगा तो मैं दूध वा दूध-भाँग से भरा कलस चढाऊँगी ॥ १८६ ॥ चउपाई। हौछि हौछि बिनवा जस जानी। पुनि कर जोरि ठाढि भइ रानी ॥ उतर को देइ देओ मरि गएउ। सबद अकूत मँडफ मँह भाउ ॥ काटि पबारा जइस परेवा। मरि भा ईस अउरु को देवा ॥ भए बिनु जिउ सब नाउत ओझा। बिख भइ पूरि काल भा गोझा ॥ जो देखइ जनु बिसहर डॅसा। देखि चरित पदुमावति हँसा ॥ भल हम आइ मनावा देवा। गा जनु सोइ को मानइ सेवा ॥ को हौछा पुरवइ दुख धोत्रा। जेहि मनि आफ साई तन सोपा ॥ दोहा। जेहि धरि सखौं उठावहिँ धर जिउ कोइ न जानइ सौस बिकल नहिँ डोल। मुख रे बकत कुबोल ॥ १६७ ॥ हौछि =दूच्छा कर; हौछि हौद्धि =दूच्छा कर कर। बिनवा = विनय किया। जस = = जैसी = यथा। जानौ =जानदू (जानाति) का भूत-काल। पुनि = पुनः = फिर । कर = हाथ । जोरि= श्रायोज्य = जोर कर । ठाढि = उत्थित = खडी। भद् = हुई (बभूव)। उतर उत्तर = जवाब। का= कः= -कौन। देदु = देवे (दद्यात् )। देवा देव । मरि = मर । गण्उ = गया (अगात् )। सबद शब्द = आवाज। अकृत = श्रादूत अकस्मात्, वा अकूत जो कूतने लायक न हो = बेहद्द = बहुत भारी। मँडफ = मण्डप । भण्उ = भया = हुआ (बभूव)। काटि = कर्तयित्वा =काट कर। पबारा पबार