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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५५९

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२०७-२०८] सुधाकर चन्द्रिका। ४५३ । गहा पकडा

देता है; .. सिंघ = सिंह। तरँदा = तैरिंद = तैरने-वा -वाला जन्तु । जर्दू = जिन्हों ने गहदू (ग्टलाति) का भूत-काल । भए = हुए (= बभूवुः)। तेहि = तिमी के उमौ के। साथ = सार्थ = संग। पदू = अपि = निश्चय । बूडे = बूडद् का भूत-काल में प्रथम पुरुष का बहु-वचन । बारि हौ = पानी में। भैंड = भेंडा = मेड = मेष । पूछि = पुच्छ = पाँछ। जिन्ह = जिन्ह के। हाथ = हस्त ॥ राजा रत्न-सेन बिलप कर कहने लगा, कि) अरे विश्व को (ठग ठग कर) खाने वाला म्लेच्छ देव; मैं ने क्यों श्रा कर तेरी सेवा कौ। जो अपनी नाव पर चढने

वह तो खे कर पार उतार देता है (ते ने क्यों मुझे डुबा दिया)। सुन्दर

फल के लिये तेरे पैर को टेका ( पकडा); (मो) दूँ मेरे लिये शुक का सेमर हुश्रा (शुक सेमर के फल को सरम जान उस में चाँच लगाता है परन्तु चाँच में नौरस रूई लपट जाने से रस के बदले दुःख हो पाता है)। (सच है ) जो पत्थल (को नाव ) पर चढ कर पार हुअा चाहता है; वह ऐसे हौ (मेरे ऐसे) बौच धारा में डूबता है। पत्थल सेवा से कैसे पसौजे । यदि नित्य (पानी से ) भीगा रहे तो भी जन्म भर में (वह) नहीं पनफता है, अर्थात् रत्ती भर भी नहीं बढता है। जो पत्थल पूजता है वही (मच्चा) पागल है; (परमेश्वर को छोड) दूसरा कहाँ (किसी का) भार ले सकता है। (इस लिये) उसो निराश परमेश्वर को क्यों न पूजिए ; जिस को श्राशा मरने और जीने दोनों में लगी रहती है ॥ जिन्हाँ ने तैरने-वाले जानवरों में जो सिंह अर्थात् श्रेष्ठ है उस को पकडा वे उस के साथ ही साथ पार हो गए; पर जिन के हाथ में भैंड को पुच्छ है, अर्थात् जो भैंड को पुच्छ पकड कर पार हुत्रा चाहे, वे अवश्य पानी में डूब गए। (सो भैंड को पुच्छ- मदृश इस देवता के पैर को मैं ने व्यर्थ हौ पकडा) ॥ २० ॥ चउपाई। देओ कहा सुनु बउरे राजा। देओहि अगुमन मारा गाजा ॥ जो पहिलइँ अपुनइ सिर परई। सो का काहु क धरहरि करई ॥ पदुमावति राजा कई बारौ। आइ सखिन्ह सउँ मँडफ उघारौ ॥ जइसइ चाँद गोहन सब तारा। परउँ भुलाइ देखि उँजिबारा॥ चमकइ दसन बौजु कइ नाई। नयन-चकर जमकात भवाँई।