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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५७७

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२१६] सुधाकर-चन्द्रिका। ४७१ । =तस्य रन =रण सङ्ग्राम। जिता =कृपा। = श्रद्धा ॥ सोझा = मौझद् (सिध्यति) का प्रथम-पुरुष, पुंलिङ्ग, भूत-काल का एक-वचन । चहर् = इच्छति = चाहता है। अउरहि अपरं हि = और को। उहई = तस्या अपि एव = उमौ पर। रोझा =रौद् (रध हिंसासरायोः, रध्यति) का प्रथम-पुरुष, पुंलिङ्ग, भूत-काल का एक वचन । महादेश्रो = महादेव, सम्बोधन । देवोन्ह = देवन्ह = देव का बहु-वचन । पिता =बाप । सरन = शरण । राम = दशरथ राजा के पुच, रावणहर्ता । जौता = जितदू (जयति) का प्रथम-पुरुष, पुंलिङ्ग, भूत- काल का एक-वचन। एइ कह = अस्थापि = दूस पर भी। मया = माया = करुणा तम = तथा = तैसी। करेह = करहु = करिए (कुरुत)। पुरवड - पूरयत = पूरा करिए। श्राम = श्राशा। इतिश्रा = हत्या =पाप । लेह = लात = लौजिए । चढाण्ड = चढाए (उच्चलति से)। काँधदू = स्कन्धे - कंधे पर। अज अद्यापि अाज तक । मद् = (गाताम् ) गई। अपराधु = अपराध = दोष । तेसरि तौमरौ हतौया। प्रहु = एह = अस्या अपि = दूसे भी। लेह = लेड लीजिए। माथ+ मस्तके = माथे पर । जउँ= यदि=जो। लेदू कद लेने को। साधु = साध पार्वती ने हँस कर महादेव से कहा, कि निश्चय इसे विरहाग्नि ने भस्म कर दिया है। निश्चय यह उस के लिये तप किया है, (क्यों कि) प्रेम ( पुष्य ) का परिमल अच्छौ तरह से, अर्थात् किसी तरह से, नहीं छिपता। निश्चय इसे प्रेम की व्यथा जगी है, (क्योंकि ) कसने से कसौटी पर सोने का (वर्ण) लगता है (मो मैं अपारारूप कसौटौ पर रत्न-सेन मोने को कस कर परख लिया )। (इस का) मुख पौला हो गया है, आँखें जल में डूब रही हैं, अर्थात् आँखों में पानी भर गया है, दोनों से प्रेम के वचन प्रगट हो रहे हैं, अर्थात् प्रेम भरी बातों ही के कारण नेत्रों में जल भर गए हैं। यह दूस जन्म में उसी (पद्मावती) के लिये सौझा है। दूसरे को नहीं चाहता (यह) उमौ पर रोझा है। हे महादेव, सब देवताओं के पिता, तुम्हारे शरण से राम ने सङ्ग्राम में (रावण को) जीता है। कहावत है कि राम ने महादेव के शरण में हो उन को विधिपूर्वक पूजा कर समुद्र के दूसो पार उन की स्थापना की, इस पर महादेव जी राम पर प्रसन्न हो कर अपने भक्त रावण की सहायता के लिये उस पार लङ्का में नहीँ गए। वैसी-ही इस पर भी कृपा कीजिए, इस को श्राशा पूरी कीजिए नहीं तो (इस के मर जाने की) इत्या लीजिए। जो दो हत्या (दोनों) काँधे पर चढाए हो वे दोष के कारण अाज तक न गई। .