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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६५४

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५३६ पदुमावति । २8 । मंत्री-खंड । [२४७ - २४८

होगा। हे राजा दूँ (तै ने) योगी हो कर खेल किया, हम लोग दूसौ दिन के लिये चेले हुए हैं। जहाँ मालिक के ऊपर कष्ट पडे वहाँ पर जो संग न छोडे वहौ ( मच्चा) सेवक है। हम लोग जिम मरणदिन को मन में अनुमान किया था, आज वह शाका (वर्ष) पूरी हुई । (ईश्वर से प्रार्थना है कि) जीव जाना अच्छा पर वचन (बात ) न जाय, हे राजा सत्य (वचन) और सुमेरु नहीं हिलता, अर्थात् नहीं डगमगाता । यदि गुरु की आज्ञा पावे तो हम लोग सामने हो कर चक्र चलावे ॥ ( हम लोग) अाज भारत के ऐमा सङ्ग्राम करें। भगवान् सत्य वचन को रखता है। मत्य हो सब कौतुक करता है और सत्य ही माची भरता है, अर्थात् मनुष्य का सच्चा गवाह सत्य ही है ; शास्त्र में भी लिखा है कि सत्ये सर्व प्रतिष्ठितम् । जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि, और सूर्यादि ग्रह सब सत्य ही से अपने अपने कामों में लगे हैं। कहावत है कि माँच को आँच क्या, अर्थात् सच्चे को श्राग को श्राँच क्या है । गोरखनाथी और नान्हकशाही साधु लोग अपने भिर को पगडी में एक लोहे का वृत्ताकार हथिभार रखते हैं। उसी को चक्र कहते हैं। इसे हाथ की अंगुली से घुमा कर शत्रु के गले पर फेंकते हैं। वह गला काटता हुआ आगे निकल जाता है। सुनते हैं कि पहले यह दूस चाल से फेंका जाता था जिस से यह शत्रु का गला काटता और चक्कर लगाता हुआ घूम कर फिर अपने मालिक के पास लौट आता था। भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र सर्वत्र प्रसिद्ध है ॥ कौरव पाण्डवों का भारत सङ्ग्राम व्यासकृत महाभारत में प्रसिद्ध है जहाँ सत्य- धुरन्धर, धर्मराजावतार, युधिष्ठिर ने भी कृष्ण के कहने से द्रोणाचार्य के मारने के लिये 'अश्वत्थामा हतो नरो वा कुञ्जरः' यह झूठी बात कह कर अपने को कलङ्कित किया ॥ २४॥ चउपाई। चेला सिध होहू। पेम बार होइ करी न कोहू ॥ जा कह सौस नाइ कइ दौजिअ । रंग न होय जभ जउँ कौजिअ॥ जेहि जिण पेम पानि भा सोई। जेहि रँग मिलइ तेही रँग होई ॥ जउँ पइ जाइ पेम सउँ जूझा। कित तपि मरहिँ सिद्ध जेइँ बूझा ॥ यह सत बहुत जो जूझि न करिअइ । खरग देखि पानी होइ ढरिअइ । गुरू कहा