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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६७

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१३-१४] सुधाकर चन्द्रिका। १५ मुहम्मद ने आशीर्वाद दिया कि तुम युग युग राज करो, (युग के लिये ५वें दोहे को टौका देखो) तुम जगत भर का बादशाह हो, और सारा जग (संसार ) तुम्हारा मुहताज हो, अर्थात् सब कोई तुम से माँगने की आशा करे, और तुम सब के दाता कहावो। यहाँ मुहम्मद से मुसल्मानौ मत के प्राचार्य और दूस ग्रन्थ का कवि दोनों का ग्रहण करने से अर्थ में भेद नहीं पडता ॥१३॥ इस चौपाई में ग्रन्थ-कार जो शेर शाह को गुरु बनाया। उस का समर्थन अगली चौपाई में है। चउपाई। बरनउँ सूर पुहुमि-पति राजा। पुहुमि न भार सहइ जेहि साजा ॥ हय-मय सेन चलइ जग पूरी। परबत टूटि उडहिँ होइ धूरौ ॥ रइनि रेनु होइ रबिहि गरासा। मानुस पंखि लेहि फिरि बासा ॥ भुइँ उडि अंतरिख गइ म्रित मंडा। खंड खंड धरति सिसिटि ब्रहमंडा ॥ डोलइ गगन इंदर डरि काँपा। बासुकि जाइ पतारहि चाँपा ॥ मेरु धसमसइ समुद सुखाहौं । बन-बैड टूटि खेह मिलि जाहौँ । अगिलहि काहु पानि खर बाँटा। पछिलहि काहु न काँदउ आँटा ॥ दोहा। हय-मय- जो गढ नएउ नहिं काही चलत होहिं सब चूर। जबहि चढइ पुहुमो-पति सेर साहि जग-सूर ॥ १४ ॥ घोडे से भरी। रइनि =रात्रि = रजनौ। रेनु = रेणु = धूरी। रबिहि = रवि को सूर्य को। गराला = ग्रास किया। बासा = वास-स्थान = बसेरा। ब्रित = मृत् मृत्तिका = मट्टौ। मंडा = माँड दिया = मर्दन कर डाला। दूँदर = इन्द्र। बासुकि - वासुकि = एक प्रकार का सर्प जो पृथ्वी के नीचे रहता है। चाँपा = चपाया = दबाया। धंस जाता है। बन-खंड = वन-खण्ड = वन-विभाग। अगिलदू आगे को घास । काँदउ = काँदो = कौचड । श्राँटा = पूरा पडा । नण्उ = झुका । उस सूर जाति वा बहादुर और पृथ्वी के पति राजा (शेर शाह) का वर्णन करता ह, अर्थात् कैसा गुरु राजा है उसका वर्णन करता है। जिस राजा के माज ( तयारी) धसमस खरहण