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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६७१

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२५६ ] सुधाकर-चन्द्रिका । ५५३ चउपाई। भान नाउँ सुनि कवल बिगासा। फिरि कइ भवर लौन्ह मधु बासा ॥ सरद चाँद मुख जीभ उघेली। खंजन नइन उठे कद केलौ ॥ बिरह न बोल आउ मुख ताई। मरि मरि बोलि जौउ बरिआई ॥ दवइ बिरह दारुन हिअ काँपा। खोलि न जाइ बिरह दुख झापा ॥ उदधि समुंद जस तरँग देखावा। चखु घूमहिँ मुख बात न आवा ॥ यह सुठि लहरि लहरि पर धावा। भवर परा जिउ थाह न पावा ॥ सखी आनि बिख देहु त मरऊँ। जिउ नहिँ पेट ताहि डर डरऊँ ॥ दोहा। T भान= खनहिँ उठइ खन बूडइ अस हिअ कवल सँकेत । हौरामनिहि बोलावहू सखी गहन जिउ लेत ॥ २५६ ॥ भानु = सूर्य । नाउँ = नाम। सुनि = श्रुत्वा = सुन कर। कवॅल = कमल । बिगासा = बिगमा = बिगसद बिकसद (विकाशते ) का भूत काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन। फिरि कद फिर कर = लौट कर । भवर = अमर = भौंरा । लौन्ह = लिया अलात्। मधु = पुष्परस = मकरन्द । बासा = वास = सुगन्ध । सरद = शरत् = शरत् ऋतु । चाँद = चन्द्र = चंद। मुख = मुंह। जौभ = जिहा। उघेली == उघारौ = उघेरद वा उघारद् (उद्घाटयति ) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । खंजन खञ्जन = खच्चरौट = एक प्रसिद्ध पक्षी जो शरत् ऋतु में देख पडता है। नदून = नयन = आँख । उठे = उठद् (उत्तिष्ठते ) का भूत काल, पुंलिङ्ग, द्वि-वचन। कद् = कर । केली = केलि = क्रीडा । बिरह = विरह = प्रिय वियोग । बोल = बोलौ = बात । श्राउ = श्रावद (श्रायाति) = आती है। ताई = तावद् (बायसते ) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन = ताय गई == मूंद गई = बंद हो गई । मरि मरि = मर मर कर = मारं भारम् । बोलि = बोलौ = बात । जीउ = जीव प्राण । बरिभाई = वरबलेन = प्रावल्येन = हठ से = जबर्दस्ती से। दवद् दव = दवाग्नि = वन को भाग। दारुन = दारुण = कठिन। हि= हृदय = दिल । काँपा काँपद् (कम्पते ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । खोलि = खोला । जादू याति जाता है। दुख = दुःख । झापा = झाँपद ( झम्पति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग एक-वचन । - 70