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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६७६

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५५८ पदुमावति । २४ । मंत्री-खंड। [२५८ अउरु अपर = और । दगध दग्ध = दाह = जलन । का = किम् = क्या। कहउँ कहूँ (कथयानि)। अपारा = अपार बेहद्द। सुन = श्टणोति = सुनता है। मो = मो सः= वह । जरदू= ज्वलति जलता है। कठिन = कठोर । असि = ऐसौ = एतादृशौ । झारा = झार = तेजी = तीब्रता = तिखाई = तीक्ष्णता । होदू = हो कर (भूत्वा)। हनिवंत = हनुमान्। बदठ =बैठा = उपविष्ट। हद् = है (अस्ति )। कोई = कोऽपि। लंका लका == रावण को राजधानी। डाहि = दग्ध्वा दाह कर जला कर । लागु = लाग = लगा है (लगति)। तनु = शरीर = देह । सोई = स एव = वहौ । बुझौ= बुझदू (बुतते ) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । श्रागि = अग्नि । जउँ = यदि। लागी लगद् (लगति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । बुझदू = (बुतते ) = बुझती है। तम = तथा =तैमौ। उपज = उपजौ = उत्पन्न हुई । बजागौ = वज्रामि। जनहुँ =जाने = जानों = जान पड़ता है। अगिनि = अग्नि = आग। उठहिँ = उत्तिष्ठन्ते = उठते हैं। पहारा पहाड = प्रहार । वैदू = बे। लागहिँ = लगन्ति = लगते हैं। अंग = श्रङ्ग = देह । अँगारा = अङ्गार । कपि = कम्पयित्वा = कप कर। माँसु = मांस = माँस । सुराग = सुरुङ्गा= सुरङ्ग । पुरोधा = पुरोअदू (प्रवयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । रकत = रक्त = लोह। कि = को। आँसु = अश्रु = बाँस । रोत्रा = रोत्र = रोहि रुदन्ति = रोती हैं। खन = क्षण। एक = एक । मारि = मारयित्वा मारकर। अस= ऐमा - एतादृश । भूजा = भूज (भ्रन्नति ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । खन हिँ क्षण में। जिादू = श्राजीव्य = जिला कर । सिंघ = सिंह, प्रसिद्ध जन्तु । गूंजा = गूंजदू (गर्जति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । इति =से । उतिम = ऊतिम मरी जिअ मरजाना। महिश्र = सहना चाहिए (मोत)। जीउ = जीव = प्राण । बरु = वरम् = श्रेष्ठ = भला । दौजिअ =दीजिए (दीयेत ) ॥ जहँ लगि जहाँ तक। चंदन = चन्दन । मलदू-गिरि = मलय-गिरि मलयाचल । और = अपि च । सागर = सागर = जलस्थान । नौर = जल = पानी। मिलि = मिलित्वा मिल कर । श्राद् = एत्य = आ कर । बुझावहि = बुझा। बुझदू = बुझती है। सरीर = पारीर = देह ॥ ( पद्मावती फिर कहने लगी कि) और अपार दाह को क्या कह (दूस कौ) ऐमौ कठिन तेजी है कि (इस के नाम को ) जो सुनता है वही जलने लगता है। (जान पडता है कि ) कोई हनुमान हो कर, (शरीर में) बैठा है और वह हनुमान लङ्का को जला कर उत्तम।